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अष्टाङ्गहृदये
पञ्चदशोऽध्यायः
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अथात उदरचिकित्सितं व्याख्यास्यामः ।
इसके अनंतर उदरचिकित्सितनामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे ॥ दोषातिमात्रोपचयात्स्रोतोमार्गनिरोधनात् ॥
सम्भवत्युदरं तस्मान्नित्यमेनं विरेचयेत् ॥ १ ॥
दोषोंके अत्यंत वृद्धि और स्रोतों के मार्गको रोकनेंसे उदररोग उपजता है, तिस कारणसे नित्यप्रति इस उदररोगीको अतिशयकरके जुलाब देता है ॥ १ ॥
पाययेत्तैलमैरण्डं समूत्रं सपयोऽपिवा ॥ मासं द्वोवाऽथवा गव्यं मूत्रं माहिषमेव वा ॥ २ ॥ पिबेद्गोक्षीरभुक्स्याहा करभीक्षीर वर्त्तनः ॥ दाहानाहातितृण्मूच्छपरीतस्तु विशेषतः ॥ ३ ॥
एक महीने तक अथवा दो महीनेतक गोमूत्र में अथवा गायके दूधमें संयुक्त किये अरंडी के तेलको पान करावे अथवा गायके मूत्रको तथा भैंसके मूत्रको ॥ २ ॥ पवि अथवा गायके दूधको पता है अथवा ऊंटनी के दूधको पीता रहे और दाह अफारा अत्यंत तृषा मूर्च्छा इन्हों संयुक्त हुआ यह रोगी विशेषकरके पूर्वोक्त द्रव्योंको सेवै ॥ ३ ॥
रुक्षाणां बहुवातानां दोषसंशुद्धि कांक्षिणाम् ॥ स्नेहनीयानि सर्पषि जठरम्नानि योजयेत् ॥ ४ ॥
रूक्षोंको और बहुतसे वातवालों को और दोपकी शुद्धिकी आकांक्षावालों के उदर रोगको नाशनेवाले स्नेहनीय वृत प्रयुक्त करने ॥ ४ ॥
षट्पलं दशमूलाम्बु मस्तुद्वद्याढकसाधितम् ॥
पीपल पीपलामूल चव्य चीता सूंठ जवाखार दशमूलका पानी ११२ तोले दही का पानी इन्होनें साधित किये ६४ तोले घृतको योजित करे |
नागरं त्रिपलं प्रस्थं घृततैलात्तथाढकम् ॥५॥ मस्तुनः साधयिस्वैतत्पिबेत्सर्वोदरापहम् ॥ कफमारुतसम्भूते गुल्मे च परमं हितम् ॥ ६ ॥
और सूंठ १२ ले घृत और तेल ६४ चौसठ चौसठ तोले, २५६ तोले ॥ ५ ॥ दहीका पानी इन्होंको साधित करके पान करे यह सब प्रकार के उदररोगोंको नाशता है कफ और वायुसे उपजे गुल्म में सुंदर हित है !! ६ ॥
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