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चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (६३७ ) 1 चतुर्गुणे जले मूत्रे द्विगुणे चित्रकात्पले ॥
कल्के सिद्धं घृतप्रस्थं सक्षारं जठरी पिबेत् ॥७॥ चौगुने पानीमें और दुगुने गोमूत्रमें और ४ तोले चीताके कल्कमें सिद्ध किया ६४ तोले घृतमें जवाखार मिला उदररोगी पीवै ॥ ७ ॥
यवकोलकुलत्थानां पञ्चमूलस्य चाम्भसा ॥
सुरासौवीरकाभ्यां च सिद्धं वा पाययेद्धृतम् ॥८॥ जब वेर कुलथी पंचमूल इन्होंके क्वाथ करके अथवा मदिरा और कांजीकरके सिद्धकिये वृतको पान करावे ॥ ॥ ८॥
एभिः स्निग्धाय संजाते बले शान्ते च मारुते ॥
सस्ते दोषाशये दद्यात्कल्पदृष्टं विरेचनम् ॥ ९॥ इन लेहोंकरके स्निग्ध हुये मनुष्यके अर्थ उपजेहुये बलमें और शांत हुये वायुमें और शिथिल हुये दोपाशयमें कल्पस्थानमें कहे जुलाबको देवै ॥९॥
पटोलमूलं त्रिफलां निशां वेल्लं च कार्षिकम्।।कम्पिल्लनीलिनी कुम्भभागान्वित्रिचतुर्गुणान् ॥ १० ॥ पिबेत्संचूर्ण्य मूत्रेण पेयां पूर्व ततो रसैः॥ विरिक्तो जाङ्गलैरद्यात्ततःषड्दिवसं पयः॥ ११ ॥ शृतं पिवेव्योषयुतं पीतमेवं पुनः पुनः ॥ हन्ति सर्वोदराण्येतच्चूर्ण जातोदकान्यपि ॥ १२ ॥ परवलको जड त्रिफला हलदी वायविडंग ये एक एक तोले और कंपिल्ला दो तोले और नीलिनी ३ तोले और निशोथ ४ तोले इन्होंका ॥१०॥ चूर्णकर गोमूत्रके संग पीवै पीछे पेयाको पीवे पीछे जुलाबको प्राप्त हुआ मनुष्य मांसके रसके संग शालिचावलोंको खावे पीछे छ; दिनोंतक ॥ ११ ॥ पकायाहुआ और सूट मिरच पीपल इन्होंसे संयुक्त दूध पीवै बारंबार पान किया यह चूर्ण उत्पन्न हुआहै पानी जिन्होंमें ऐसे सब उदररोगोंको नाशताहै ॥ १२ ॥
गवाक्षी शंखिनी दन्ती तिल्वकस्य त्वचं वचाम् ।।
पिवेत्कर्कन्धुमृद्वीकाकोलाम्भोमूत्रसीधुभिः॥ १३ ॥ इंद्रायण शांखिनी जमालगोटाकी जड हिंगणवेंटकी छाल बच इन्होंके चूर्णको बेर मुना बडवेरी इन्होंका पानी गोमूत्र सीधु इन्होंमें एकको इसके संग पावै ॥ १३ ॥
यवानी हपुषाधान्यं शतयुष्पोपकुञ्चिका ॥ कारवी पिजली मूलमजगन्धा शठी वचा ॥ १४ ॥ चित्रकाजाजिकं व्योपं.
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