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चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (६२३ ) च्छ्रान्गुल्मान्वातविण्मूत्रसंगं कण्ठे बन्धं हृदहं पाण्डुरोगम्॥ अन्नाश्रद्धाप्लीहदु महिध्मावआध्मानश्वासकासाग्निसादान्॥३३॥
हींग वच आरनी अनार अजमोद धनियां पाठा पोहकरमूल कचूर हाऊवेर चीता जवाखार साजीखार कालानमक सेंधानमक मनियारीनमक सूंठ मिरच पीपल ॥ ३१ ॥ जीरा चव्य अमली अम्लवेतस इन्होंकरके किया यह हिंग्वादिचूर्ण हृदा पशली बस्तिस्थान त्रिकस्थान योनि गुदा इन्होंमें उपजे शूल और वायु आम कफ इन्होंसे उपजे शूल ॥ ३२ ॥ और कष्टरूप गुल्म वात विष्ठा मूत्र इन्होंका बंधा कंठमें बंधा हद्ह पांडुरोग अन्नकी अश्रद्धा प्लहिरोग बवासीर हिचकी व रोग अफारा श्वास खांसी मंदाग्नीको नाशताहै ॥ ३३॥
लवणयवानीदीप्यककणनागरमुत्तरोत्तरं वृद्धम् ॥
सर्वसमांशहरीतकिचूर्णं वैश्वानरः साक्षात् ॥ ३४ ॥ __ नमक अजवायन अजमोद पीपला सूंठ ये सब उत्तरोत्तर क्रमसे बढेभागसे लेवे और सबोंके समान हरडैका चूर्ण लेवै यह साक्षात् बैश्वानरचूर्ण है ॥ ३४ ॥
त्रिकटुकमजमोदा सैन्धवं जीरके वे समधरणधृतानामष्टमो हिङ्गुभागः॥ प्रथमकवलभोज्यः सर्पिषा चूर्णकोऽयं जनयति भृशमग्निं वातगुल्मं निहन्ति ॥३५॥ झूठ मिरच पीपल अजमोद सेंधानमक स्याहजीरा सफेदजीरा ये सब चार चार मासे करके समान भाग लेवै और आठवाँ भाग हींगका लेबै पीछे चूर्ण कर घतके संग प्रथम प्रासमें भोजन करना योयग्है, यह अग्निको अत्यंत जगाताहै और वातके गुल्मको नाशताहै ॥ ३५ ॥
हिङ्गग्राविडशुण्ठ्यजाजिविजयावाट्याभिधानामयैश्चूर्णःकुम्भ निकुम्भमूलसहितै गोत्तरं वर्द्धितैः॥पीतःकोष्णजलेन कोष्ट जरुजो गुल्मोदरादीनयं शार्दूलः प्रसभं प्रमथ्य हरति व्याधीन्मृगौघानिव ॥ ३६॥ हींग वच मनियारीनमक सूंठ जीरा भारंगी पोहकरमूल कूट निशोत जमालगोटाकी जड ये सब उत्तरोत्तर क्रमसे बढेहुये भागोंकरके लेने, अल्प गरम किये पानीके संग पान किया इन्होंका चूर्ण कोष्ठके शूलगुल्म उदर आदि व्याधियोंको विलोडित करके नाशताहै जैसे मृगोंके समूहको वेगसे सिंह ।। ३६ ॥
सिन्धूत्थपथ्याकणदीप्यकानां चूर्णानि तोयैःपिबतां कवोष्णैः॥ प्रयाति नाशं कफवातजन्मा नाराचनिभिन्न इवामयौघः ॥३७॥
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