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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६२२) अष्टाङ्गहृदयेपपिल त्रिफला हींग अजवायन चव्यं अजमोद ॥ २४ ॥ अम्लवेतस सेंधानमक देवदारु इन्होंमें ६४ तोले घृतको पकावै यह घृत सब प्रकारके वातगुल्मों के विकारको जीतताहै ॥ २५ ॥ षट्पलं वा पिबेत्सर्पिर्यदुक्तं राजयक्ष्मणि॥प्रसन्नया वा क्षीरार्थः सुरया दाडिमेन वा ॥ २६ ॥ घृते मारुतगुल्मनः कार्यो दनः सरेण वा॥ अथवा राजयक्ष्माकी चिकित्सामें कहेहुये षट्पल घृतको पावै अथवा प्रसन्नामदिराके साथ व साधारण मदिराके साथ अथवा अनारके रसके साथ ॥ २६ ॥ अथवा दहीके सरके साथ घृतमें क्षीरार्थ करना योग्य है यह वायुके गुल्मको नाशताहै॥ वातगुल्मे कफो वृद्धो हत्वाग्निमरुचिं यदि ॥ २७॥ हल्लासं गौरवं तन्द्रां जनयेदुल्लिखेत्तु तम् । और बातके गुल्ममें बडा हुआ कफ अग्निको नष्ट करके जो कदाचित् अरुची॥२७॥हल्लास अर्थात् थुकथुकी गौरव अर्थात् शरीरका भारीपन तंद्राको उपजावै तब तिस कफको वमनके द्वारा निकास। शूलानाहविबन्धेषु ज्ञात्वा सस्नेहमाशयम् ॥२८॥ निर्यहचूर्णवटकाः प्रयोज्या घृतभेषजैः॥ और शूल अफारा विबंधमें स्नेहसहित आशयको जानकर ॥ २८ ॥ घृतमें कहे औषधोंकरके काथ चूर्ण गोली ये प्रयुक्त करने योग्यहैं ॥ कोलदाडिमघम्बुितक्रमद्याम्लकाञ्जिकैः॥ २९ ॥ ___ मण्डेन वा पिवत्प्रातश्चूर्णान्यन्नस्य वा पुरः॥ और बेर अनार घामका पानी तक्र मदिरा खट्टारस कांजी ॥ २९ ॥ इन्होंकरके अथवा मंड को अन्नके भोजनसे पहिले वक्ष्यमाण चूर्णोको पावै ॥ चूर्णानि मातुलुङ्गस्य भावितान्यसकृद्रसे ॥ कुर्वीत कार्मुकतरान्वटकान्कफवातयोः॥३०॥ .और विजोराके रसमें बारंबार भावित किये चूर्णों को और कर्मको तत्काल करनेवाली गोलियोंको कफ और बातके गुल्ममें करै ॥ ३० ॥ हिङ्गवचाविजयापशुगन्धादाडिमदीप्यकधान्यकपाठाः॥ पुष्कर मूलशठीहपुषाग्निक्षारयुगत्रिपटुत्रिकटनि ॥ ३१॥ साजाजिच व्यं सहतिन्तिडीकं सवेतसाम्लं विनिहन्ति चूर्णम् ॥ हृत्पार्श्व बस्तित्रिकयोनिपायुशूलानि वाय्वामकफोद्भवानि ॥३२॥ कृ. For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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