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चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (६२१) जाजीहिङ्गहपुषाकारवीवृषकोषकैः॥निकुम्भकुम्भमूर्वेभापप्पलीवेल्लदाडिमैः॥ १८॥ वदंष्ट्रात्रपुसेर्वारुबीजहिंस्राइमभेदकैः॥ मिसिद्विक्षारसुरससारिवानीलिनीफलैः॥१९॥ त्रिकटुत्रिपटूपेतैर्दाधिकं तद्वयपोहति ॥रोगानाशुतरान्पूर्वान्कष्टानपि च शीलितम् ॥२०॥ अपस्मारगरोन्मादमूत्राघातानिलामयान् ॥ दशमूल खरेहटी नीलिनी कलौंजी दोनों तरहकी नखी ॥ १३ ॥ पोहकरमूल अरंड रायशण आसगंध भारंगी गिलोय कचूर इन्होंको और कापूरकचरीको १०२४ तोले पानीमें पकावै ॥१४॥ और जव बेर कुलथी उडद ये सब ६४ चौंसठतोले १९२ तोले दही इन्होंमें ६४ तोले घृतको पकावै ॥ १५ ॥ और अनार आंबडा बिजोरा इन्होंसे उपजे स्वरसोंसे और तुषांबु कांजी इन्होंसे संयुक्त करै और सूक्ष्म पिसेहुये कल्कोंकरके ॥ १६ ॥ अर्थात् भारंगी धनियां वच पीपलामूल रायशण चीता भूमिआंमला अजमोद अजवायन अम्लवेतस कालाजीरा॥ १७॥ जीरा हींग हाउबेर बडीसौंफ वांसा ईख जमालगोटाको जड निशोत गजपापली वायविडंग अनार ।। १८ ॥ गोखरू खरबूजाके बीज काकडीके बीज वालछड पाषाणभेद सौंफ जवाखार साजीखार वीजावोल शारिवा नीलिनी त्रिफला ॥ १९॥ सूंठ मिरच पीपल कालानमक सेंधानमक मनियारीनमक इन्होंको संयुक्त कर सिद्ध किया घृत कष्टसाध्य पूर्वोक्त सबरोगोंको तत्काल नाशताहै और अभ्यस्त किया ॥ २० ॥ अपस्मार विष उन्माद मूत्राघात वातरोगको नाशताहै ॥ .
ब्यूषणत्रिफलाधान्यचविकावेल्लचित्रकैः ॥२१॥
कल्कीकृतैघृतं पक्कं सक्षीरं वातगुल्मनुत् ॥ और झूठ मिरच पीपल त्रिफला धनियां चव्य वायविडंग चीता ॥ २१ ॥ इन्होंके कल्कोंकरके दूधके संग पकाया हुआ घृत वातके गुल्मोंको नाशताहै ।
तुलां लशुनकन्दानां पृथक्पश्चपलांशकम् ॥२२॥ पञ्चमूलं महवाम्बुभारार्द्ध तद्विपाचयेत् ॥ पादशेषं तदर्द्धन दाडिमस्वर संसुराम् ॥ २३ ॥धान्याम्लं दधि चादाय पिष्टांश्चाचपलांश कान् ॥त्र्यूषणत्रिफलाहिङ्ग्यवानीचव्यदीप्यकान॥२४॥साम्ल वेतससिन्धूत्थदेवदारून्पचेघृतात् ॥ तैः प्रस्थं तत्परं सर्ववा
तगुल्म विकारजित् ॥ २५॥ __ और लहशनका कंद ४०० तोले और पृथक् ॥२२॥ बडापंचमूल २० तोले इन्होंको४००० चारहजारतोले पानीमें पकावै चौथाई शेषरहे तिसको आधा भाग करके अनारका स्वरस और मदिरा ॥ २३ ॥ कांजी दही और दो दो तोले प्रमाणसे संयुक्त और पिसेहुये ऐसे सूंठ मिरच
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