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(६२४)
अष्टाङ्गहृदयेसेंधानमक हरडै पीपल अजमोद इन्होंके चूर्णोको अल्प गरम किये पानियोंके संग पान करनेवाले मनुष्योंके कफ और वातसे उपजा रोगोंका समूह नाशको प्राप्त होताहै जैसे नाराचरससे निर्भिन्न हुआ रोग ॥ ३७॥
पूतीकपत्रगजचिर्भटचव्यवह्निव्योषं च संस्तरचितं लवणोपधानम्॥दग्ध्वा विचूर्ण्य दधिमस्तुयुतं प्रयोज्यं गुल्मोदरश्वयथुपाण्डुगदोद्भवेषु ॥ ३८ ॥ पूतीकरजुआके पत्ते गजपीपल रक्ततूंबी चव्य चीता सूंठ मिरच पीपल ये सब ऊपर ऊपर भागकरके सम्यक्प्रकारसे संकृत किये और सबोंके ऊपर नमकको डाल अग्निसे दग्ध कर पीछे चूर्ण बना दहीके पानीके संग गुल्मरोग उदररोग शोजा पांडुरोग इन्होंसे उपजे शूलोंमें प्रयुक्त करना योग्यहै ॥ ३८ ॥
हिङ्ग त्रिगुणं सैन्धवमस्मात्रिगुणं तु तैलमैरण्डम् ॥
तत्रिगुणरसोनरसं गुल्मोदरवर्मशूलघ्नम् ॥ ३९॥ हींग एक भाग सेंधानमक तीन भाग अरंडीका तेल ९ भाग लहसनका रस २७ भाग यह योग गुल्म उदररोग वर्मरोग शूलको नाशताहै ॥ ३९ ॥
मातुलुङ्गरसो हिङ्गु दाडिमं बिडसैन्धवम् ॥
सुरामण्डेन पातव्यं वातगुल्मरुजापहम् ॥ ४० ॥ विजोराका रस हींग अनारदाना मनियारीनमक सेंधानमक यह योग मदिराके भंडके संग पान करना योग्यहै यह वात गुल्मके शूलको नाशताहै ॥ ४० ॥
शुंठ्याः कर्ष गुडस्य द्वौ धौतात्कृष्णतिलात्पलम् ॥ खादन्ने कत्रसंचूर्ण्य कोष्णक्षीरानुयोजयेत् ॥ ४१॥ वातहृद्रोगगुल्मा
शेयोनिशूलशकृद्गहान् ॥ झूठ १ तोला गुड २ तोले साफ किये काले तिल ४ तोले इन्होंको मिलाके चूर्ण कर खावै . और अल्प गरम किये दूधका अनुपान करै ।। ४१ ॥ यह चूर्ण वातसे उपजे हृद्रोग गुल्म बवासीर योनिशूल विष्ठाका बँधा इन्होंको जीतताहै ॥ . पिबेदेरण्डतैलं तु वातगुल्मी प्रसन्नया ॥ ४२ ॥
श्लेष्मण्यनुबले वायौ पित्ते तु पयसा सह ॥ और वातगुल्मवाला मनुष्य प्रसन्ना मदिराके संग अरंडीके तेलको पावै ॥ ४२ ॥ परंतु सहाय. कारी कफ और वायु होवे तब और सहायकारी पित्त होवे तब दूधके संग अरंडीके तेलको पावै ।।
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