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www.kobaith.org (६०८) ' अष्टाङ्गहृदयेरोधाभयातोयदकट्फलाना पाठाविडङ्गार्जुनधान्यकानाम् ॥ गायत्रिदार्वीकृमिहृद्वचाना कफे त्रयःक्षौद्रयुताः कषायाः॥८॥ लोध हरडै नागरमोथा कायफल इन्होंका काथ अथवा पाठा वायविडंग कौहवृक्ष धनियां इन्होंका काथ अथवा खैर दारुहलदी वायविडंग बच इन्होंका क्वाथ शहदसे संयुक्तकरै ये तीनों काथ कफकी अधिकतावाले प्रमेहमें हितहैं ॥ ८ ॥
उशीररोधार्जुनचन्दनाना पटोलनिम्बामलकामृतानाम् ॥ रोधाम्बुकालीयकधातकीनां पित्ते त्रयः क्षौद्रयुताः कषायाः॥९॥ खश लोध कौहवृक्ष चंदनका काथ और परवल नींब गिलोय आमला इन्होंका काथ और लोभ नेत्रवाला दारुहलदी धबके फूलका काथ शहदसे संयुक्त किये ये तीनों काथ पितकी अधिकतावाले प्रमेहोंमें हितहैं ॥ ९॥
यथास्वमेभिः पानान्नं यवगोधूमभावनाः॥
वातोल्वणेषु स्नेहाश्च प्रमेहषु प्रकल्पयेत् ॥ १० ॥ यथायोग्य इन लोध आदि औषधोंमें किये अन्न और पान और जब तथा गेहूंकी भावना और तिन्ही लोध्र आदि औषधोंकरके स्नहोंको वातकी अधिकतावाले प्रमेहोंमें करिषत करै ॥१०॥
अपूपसक्तुवाट्यादिर्यवानां विकृतिहिता ।। गवाश्वगुदमुक्ताना मथवा वेणुजन्मनाम् ।। ११ ॥ तृणधान्यानि सुझायाः शालि जीर्णः सपष्टिकः॥श्रीकुकुटोऽम्लः खलकस्तिलसर्षपकिदृजः॥ ॥१२॥ कपित्थं तिन्दुकं जम्बुस्तकृता रागखाण्डवाः॥ तिक्तं शाकं मधु श्रेष्ठा भक्ष्याः शुष्काः ससक्तवः॥१३॥धन्वमांसानिशूल्यानि परिशुष्काण्ययस्कृतिः ॥ मध्वरिष्टासवाजीर्णाः सीधुः पक्करसोद्भवः॥१४॥ तथासनादिसाराम्बु दर्भाम्भो माक्षिकोदकम् ॥ जवोंके मालपूवा और सत्तुआदि विकृति हितहै, अथवा गाय घोडेकी गुदासे निकसहुये जत्रोंकी अथवा वाससे उपजे हुये जवोंकी विकृति हितहै ॥ ११ ॥ तृणधान्य मूंग आदि अन्न पुराना शालिचावल पुराना शांठिचावल और तिल शरसेंके मैलसे उपजा कुकटसंज्ञक और अम्ल खल ॥ १२॥ कैथ तेंदु जामन इन्होंसे किये राग और खांडव तिक्तशाक शहद त्रिफला सूखै और सत्तुओंसे संयुक्त भक्ष्यपदार्थ ॥ १३ ॥ शूलमें पक्क किये और सूखेहुये जांगलदेशके जीवोंके मांस और बक्ष्यमाण अयस्कृति और पुरानी मधुसंज्ञक मदिरा अरिष्ट आसव और पकरससे उपजा
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