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चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम्। (६०९) सीधु ॥ १४ ॥ आसनादिसारके वर्गका पानी और सफेद डाभका पानी और शहदसंयुक्त पानी ये सब प्रमेहमें हितहैं ॥ .
वासितेषु वराक्काथेशर्वरी शोषितेष्वहः ॥ १५॥ यवेषु सकृतान्सक्तून्सक्षौद्रान्सीधुना पिबेत् ॥ .
और त्रिफलाके काथमें रात्रिमात्र वासित किये और पीछे दिनभर शोषित किये ॥ १५ ॥ यवोंमें अच्छीतरह किये हुये और शहदमें संयुक्त सत्तुओंको सीधुके संग पावै ॥
शालसप्ताहकम्पिल्लवृक्षकाक्षकपित्थजम् ॥ १६ ॥ रोहीतकं च कुसुमं मधुनाऽद्यात्सुचूर्णितम् ॥ कफपित्तप्रमेहषु पिबेद्धात्री रसेन वा॥ १७॥
और कौहवृक्ष शातला कपिला नादरूखी कमलाक्ष कैथ इन्होंके फूलोंका ॥ १६ ॥ और रोहिडाके फूलोंका शहदसे संयुक्त किया महीन चूर्ण सेवना योग्यहै अथवा कफ और पित्तके प्रमहीमें वहीं चूर्ण आमलेके रसके संग पीना ॥ १७ ॥ त्रिकण्टकनिशारोधसोमवल्कवचार्जुनैः॥पद्मकाश्मन्तकारिष्ट चन्दनागुरुदीप्यकैः॥१८॥ पटोलमुस्तमञ्जिष्ठामाद्रीभल्लातकैः । पचेत् ॥ तैलं वातकफे पित्ते घृतं मिश्रेषु मिश्रकम् ॥ १९ ॥ गोखरू हलदी लोध श्वेतखैर वच कोहवृक्ष पद्माख आटा नींब चंदन अगर अजमोद इन्होंकरके ॥ १८ ॥ और परवल नागरमोथा मजीठ कालाअतीश भिलावाँ इन्होंकरके वातकफसे उपजे प्रमेहमें तेलको पकावै और पित्तसे उपजे प्रमेहमें घृतको पकावै और दो दोषोंसे उपजे हुये प्रमेहमें घृत तेल दोनोंको पकावै ।। १९ ॥
दशमूलं शठी दन्ती सुराळं द्विपुनर्नवम् ॥ मूलं स्नुगर्कयोः पथ्यां भूकदम्बमरुष्करम् ॥ २०॥ करञ्जवरुणान्मूलं पिप्पल्या पौष्करं च यत् ॥ पृथग्दशपलं प्रस्थान्यवकोलकुलत्थतः।२१॥ श्रीश्चाष्टगुणिते तोये विपचेत्पादवर्तिना ॥ तेन द्विपिप्पलीचव्यवचानिचलरोहिषैः॥२२॥त्रिवृद्विडङ्गकम्पिल्लभाङ्गीबिल्वैश्च साधयेत्॥प्रस्थं घृताजयेत्सर्वांस्तन्महान्पिटिका विषम्॥ ॥ २३॥ पाण्डुविद्रधिगुल्मार्शःशोफशोषगरोदरम् ॥ श्वास कासं वार्म वृद्धिं प्लीहानं वातशोणितम् ॥ २४ ॥ कुष्टोन्मादा वपस्मारं धान्वन्तरमिदं घृतम् ॥
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