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चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (६०७ )
द्वादशोऽध्यायः। अथातःप्रमेहचिकित्सितं व्याख्यास्यामः। इसके अनंतर प्रमेहचिकित्सितनामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे । मेहिनो बलिनः कुर्यादादौ वमनरेचने॥ स्निग्धस्य सर्षपा रिष्टनिकुम्भाक्षकरंजकैः॥१॥ तैलैस्त्रिकण्टकायेन यथास्वं साधितेन वा ॥ स्नेहेन मुस्तदेवाह्वनागरप्रतिवापवत् ॥ २ ॥ सुरसादिकषायेण दद्यादास्थापनं ततःान्यग्रोधादेस्तु पित्तारसैः शुद्धं च तर्पयेत् ॥३॥ बलवाले और शरसों नींब निशोथ बहेडा करंजुआ इन्होंके तेलोंकरके स्निग्ध प्रमेहवाले मनुव्यको प्रथम वमन और जुलाब देवै ॥ १ ॥ अथवा गोखरू हलदी इत्यादि करके वक्ष्यमाण निष्कंट आदि स्नेहकरके अथवा यथायोग्य द्रव्योंमें साधित किये स्नेहकरके नागरमोथा देवदार सुंठकी प्रतिवापसे संयुक्त ॥ २ ॥ आस्थापन बस्तिको सुरसादि काथकरके देवै, पीछे शुद्धकिये प्रमेहरोगीको जांगलदेशके मांसोंके रसकरके तृप्तकरे और पित्तसे पीडित प्रमेहरोगीको न्यग्रोध आदि औषधोंके काथ करके आस्थापितकरै ॥ ३ ॥
मूत्रग्रहरुजागुल्मक्षयाद्यास्त्वपतर्पणात् ॥ ततोऽनुबन्धरक्षार्थ शमनानि प्रयोजयेत् ॥ ४॥ असंशोध्यस्य तान्येव सर्वमेहेषु पाययेत् ॥ मूत्रग्रहपीडा गुल्म क्षय आदि लंघनसे उपजतेहैं, तिस हेतुसे अनुबंधकी रक्षाके अर्थ शमन औषधोंको प्रयुक्त करै ॥ ४ ॥ नहीं शोधन करनेके योग्य गर्भिणी आदिको सबप्रकारके प्रमेहोंमें शमनरूप औषधोका पान करावै ॥
धात्रीरसप्लुतां प्राढे हरिद्रां माक्षिकान्विताम् ॥ ५॥ दार्वीसु राह्वात्रिफला मुस्ता वा कथिता जले ॥ चित्रकत्रिफलादार्वी कलिङ्गान्वा समाक्षिकान् ॥६॥ मधुयुक्तं गुडूच्या वा रसमा मलकस्य वा ॥७॥ अथवा आँवलाके रससे आलोडित और शहदसे अन्वित हलदीको प्रभातमें पान करावै ॥ ५॥ अथवा दारुहलदी देवदार त्रिफला नागरमोथा इन्होंका जलमें क्वाथ बनाके पान करावे, अथवा चीता त्रिफला देवदार इंद्रजवको शहदसे संयुक्त कर पान करावै ॥ ६ ॥ अथवा शहदसे संयुक्त गिलोय के रसको अथवा शहदसे संयुक्त आमलाके रसको पान करावै ॥ ७ ॥
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