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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६०४) अष्टाङ्गहदयेसर्वथा चोपयोक्तव्यो वर्गो वीरतरादिकः ॥ ४० ॥ रेकार्थ तैल्वकं सर्विस्तिकर्म चशीलयेत्॥ विशेषादुत्तरान्बस्तीच्छुक्राइम-ञ्चशोधिते ॥४१॥ तैमूत्रमार्गे बलवाञ्छुक्राशयविशुद्धये ॥ पुमान्सुतृप्तो वृष्याणां मांसानां कुक्कटस्य च ॥४२॥ कामं सकामाः सेवेत प्रमदा मददायिनीः ॥ और सब प्रकारकरके काथ पेया जल आदिमें वीरतर्वादिगण युक्त करना योग्य है ॥ ४० ॥ और जुलाबके अर्थ हिंगनबेटसे घृतका और बस्तिकर्मका अभ्यास करें और विशेष करके उत्तर बस्तियोंको सेवै तिन उत्तर बस्तियों करके वीर्य्यकी पथरीमें शोधित हुये ॥ ४१ ॥ मूत्रमार्गमें बलवान् मनुष्य वीर्यके स्थानकी शुद्धिके अर्थ पुष्टी करनेवाले द्रव्योंके और मुर्गाआदिके मांसकरके तृप्त हुआ मनुष्य॥४२॥इच्छाके अनुसार मदको देनेवाली और कामसे संयुक्त हुई स्त्रियोंको सेवै ॥ सिद्धैरुपक्रमैरेभिर्न चेच्छान्तिस्तदा भिषक् ॥४३॥ इति राजानमापृच्छय शस्त्रं साध्ववचारयेत्॥ अक्रियायां ध्रुवोमृत्युः क्रियायां संशयो भवेत् ॥४४॥ निश्चितस्यापि वैद्यस्य बहुशः सिद्धकर्मणः॥ जो सिद्धरूप इन चिकित्साओंकरके रोगकी शांति नहीं होवे तब कुशल वैद्य ॥ ४३ ॥ वक्ष्यमाण प्रकारसे राजाको पूँछ सुंदर पथरीको निकासनेके अर्थ शस्त्रकर्मको करै, हे राजन् ! क्रियाके नहीं करनेमें निश्चय मृत्यु होगी और क्रियाकरनेमें ॥ ४४ ॥ निश्चित करनेवाले और बहुत वार सिद्धकरी क्रियावाले वैद्यकोभी संशय होताहै अर्थात् शस्त्रकर्ममें मृत्युका संशयहै ॥ अथातुरमुपस्निग्धं शुद्धमीषच्च कर्शितम् ॥४५॥ अभ्यक्तस्विनवपुषमभुक्तं कृतमङ्गलम् ॥ आजानुफलकस्थस्य नरस्याङ्के व्यपाश्रितम् ॥ ४६ ॥ पूर्वेण कायेनोत्तानं निषण्णं वस्त्रचुम्भ ले ॥ ततोऽस्याकुञ्चिते जानुकूपरे वाससा दृढम् ॥४७॥ स. हाश्रयमनुष्येण बद्धस्याश्वासितस्य च ॥नाभेः समन्तादभ्यज्यादधस्तस्याश्च वामतः ॥४८॥ मृदित्वा मुष्टिना कामं यावदश्मर्यधोगता ॥ तैलाक्ते वर्द्धितनखे तर्जनीमध्यमे ततः ॥४९॥ अदक्षिणे गुर्देऽगुल्यौ प्रणिधायानुसेवनीम् ॥ आसाद्य वलयं नाभ्यामश्मरी गुदमेढ़योः॥५०॥कृत्वान्तरे तथा बस्तिं निर्वलीकमनायतम् ॥ उत्पीडयेदंगुलिभ्यां यावदन्थिार For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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