________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(५९१)
अष्टाङ्गहृदयेभूनिम्बकटुकामुस्तात्र्यूषणेन्द्रयवान्समान् ॥३७॥ द्वौ चित्रका त्कुटजत्वग्भागान्षोडश चूर्णयेत् ।। गुडशीताम्बुना पीतं ग्रह णीदोषगुल्मनुत् ॥ ३८॥ कामलावरपाण्डुत्वमेहारुच्याति सारजित् ॥
और चिरायता कुटकी नागरमोथा झूठ मिरच पीपल इंद्रजब ये सब समान भाग ॥ ३७॥ .और चीता दो भाग और कूडाकी छाल १६ भाग इन्होंका चूर्ण गुडके सर्वतके संग पानकी या ग्रहणीदोष गुल्म ॥ ३८ ॥ कामलावर पांडुरोग प्रमेह असाचे अतिसारको जतिताहै ।। . नागरातिविषा मुस्ता पाठा बिल्वं रसाञ्जनम् ॥३९॥ कुटजत्वक्फलं तिक्ता धातकी च कृतं रजः॥ क्षौद्रतण्डुलवारिभ्यां पैत्तिके ग्रहणीगदे ॥ ४० ॥ प्रवाहिकाशेगुदरुयक्तोत्थानेषु चेष्यते ॥
और झूठ अतीस नागरमोथा पाठा बेलगिरी रशोत ॥ ३९ ॥ कुडाकी छाल इंद्रजब कुटकी धायके फूल इन्होंका चूर्ण शहद और चावलोंके पानीके संग पित्तकी संग्रहणीमें ॥ ४० ॥ और प्रवाहिका बवासीर गुदरोग रक्तके रोगमें वांछितहै ।।
चन्दनं पद्मकोशीरं पाठां मूर्वां कुटन्नटम् ॥४१॥ षड्ग्रन्थासारिवाऽऽस्फोटासप्तपर्णाटरूषकान्॥पटोलोदुम्बराश्वत्थवटप्लक्ष कपीतनम॥४२॥कटुका रोहिणी मुस्तां निम्बं च द्विपलांशका. न् ॥ द्रोणेऽपां साधयेत्तेन पचेत्सर्पिः पिचन्मितैः ॥४३॥ किराततिक्तेन्द्रयववीरामागधिकोत्पलैः ॥ पित्तग्रहण्यां तत्पेयं कुष्ठोक्तं तिक्तकं च यत् ॥४४॥
चंदन पद्माख खश पाठा मूर्वा शोनापाठा ।। ४ १ ॥ वच शारिवा उत्पलशारिवा शातला वांसा परवल गूलर पीपलवृक्ष वड पिलखन पारस पीपल ॥ ४२ ॥ कुटकी हरडै नागरमोथा नींबकी छाल ये सब आठ आठ तोले १०२४ तोले पानी तिसमें ३२ तोले घृतको पकावै ॥ ४३ ॥पीछे पकानेके समय चिरायता इंद्रजव क्षीरकाकोली पीपल कमल इन्होंका कल्कभी मिलावै, यह घृत अथवा कुष्ठप्रकरणमें कहा तिक्तकधृत पित्तकी संग्रहामें पीना योग्य है ॥ ४४ ॥ .
ग्रहण्यां श्लेष्मदुष्टायांतीक्ष्णैः प्रच्छर्दने कृते॥
कटुम्ललवणक्षारैः क्रमादग्निं विवर्द्धयेत् ॥४५॥ कफ करके दुष्ट हुई ग्रहणीमें तीक्ष्णऔषधोंकरके वमन कियेके पश्चात् कटु अम्ल नमक खार करके क्रमसे अग्निको बढावै ॥ ४५ ॥
For Private and Personal Use Only