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www.kobatirth.org चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (५९३) पञ्चकोलाभयाधान्यपाठागन्धपलाशकैः॥
बीजपूरप्रवालैश्च सिद्धैः पेयादि कल्पयेत् ॥४६॥ पीपल पीपलामूल चव्य चीता सूंठ हरडै धनियां पाठा गंधपत्र इन्हों करके और विजोराके अंकुरोंकरके सिद्ध किये काथोंके द्वारा पेयाआदिको कल्पितकरै।। ४६ ।।
द्रोणं मधूकपुष्पाणा विडडं च ततोऽर्द्धतः ॥ चित्रकस्य ततोऽई च तथा भल्लातकाढकम्॥४७॥ मञ्जिष्ठाऽष्टपलं चैतज्जलद्रोणत्रये पचेत् ॥ द्रोणशेषं शृतं शीतं मध्वर्धाढकसंयुतम्॥४८॥ एलामृणालागुरुभिश्चन्दनेन च रूपिते ॥ कुम्भे मासं स्थित जातमासवं तं प्रयोजयेत् ॥ ४९ ॥ ग्रहणी दीपयत्येष वृंहणः पित्तरक्तनताशोषकुष्ठकिलासानां प्रमेहाणां च नाशनः॥५॥ महुआके फूल १०२४ तोले वायविडंग ५१२ तोले चीता २५६ तोले मिलाये २५६ तोले ॥ ४७ ॥ मँजीठ ३२ तोले इन सबोंको ३०७२ तोले पानीमें पकावै जब १०२४ तोले पानी शेष रहै तब १२८ तोले शहदको संयुक्त कर ॥ ४८ ॥ इलायची कमलकी डंडी अगर चंदन इन्होंकरके लेपित किये कलशेमें डाल और एकमहीनातक स्थितकर पीछे तिस आसवको प्रयुक्त करै ॥ ४९ ॥ यह आसव ग्रहणीको दीपित करताहै और बृंहण है और रक्तपित्त शोष कुष्ट किलाश और सबप्रकारके प्रमेह इन्होंको नाशताहै ॥ ५० ॥
मधूकपुष्पस्वरसं शृतमर्द्धक्षयीकृतम्॥क्षौद्रपादयुतं शीतं पूर्ववत्सन्निधापयेत् ॥ ५१ ॥ तत्पिवन्ग्रहणीदोषाञ्जयेत्सर्वान्हिताशनः॥ तद्वद्राक्षेक्षुखर्जूरस्वरसानासुतान्पिबेत् ॥ ५२॥ महुआके फूलोंके रसको पकावै जब आधाभाग शेष रहै तब चौथाई भाग शहदको मिला और शीतल कर पहिलेकी तरह स्थापित करै ।। ५१ ॥ तिसको पीनेवाला और हितपदार्थोंको खानेवाला मनुष्य सब प्रकारकी ग्रहणीदोपोंको जीतताहै और तैसेही दाख ईख खजूरके स्वरसोंको अथवा आसवोंको पीवे ॥ ५२ ॥ हिंगुतिक्तावचामाद्रीपाठेन्द्रयवगोक्षुरम्॥पञ्चकोलंचकर्षांश पलांशं पटुपञ्चकम् ॥५३॥ धृततैलद्विकुडवे दन्नः प्रस्थद्वये च तत् ॥ आपोथ्य काथयेदग्नौ मृदावनुगते रसे॥५४॥ अन्तर्धमं ततोदग्ध्वा चूर्णीकृत्य घृताप्लुतम् ॥ पिबेत्पाणितलं तस्मि
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