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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (५७९) और अनुबंधमें शहदसे संयुक्त किये घृतको चावलोंके पानीके संग पान करावै ॥ १६ ॥ अथवा पाठा इंद्रजव कूडाकी छाल दारुहलदी पीपलामूल सूंठके अथवा पीसेहुये इंद्रजव और काले अतीशकी छालको शहदसे संयुक्त कर चावलोंके पानी के संग पावै ।। ५७ ॥ अथवा अतीश बेलगिरी कूडा नेत्रवाला नागरमोथा इन्होंके क्वाथको शहदसे संयुक्त कर चावलोंके पानीके संग पोवै अथवा अतीश मूर्वा हलदी इंद्रजव रशोत इन्हेंकि काथको शहदसे संयुक्त कर चावलोंके पानीके संग पावै ॥ ५८ ॥ अतीश सूंठ नागरमोथा इन्द्रजब कायफल इन्होंके क्वाथको शहदमें मिला चावलोंके पानीके संग पान करावै ॥ फलं वत्सकबीजस्य श्रपयित्वा रसं पिबेत् ॥ ५९ ॥ यो रसाशी जयेच्छीघ्रं सपैत्तं जठरामयम्॥मुस्ताकषायमेवं वा पिबेन्मधुसमायुतम्॥६०॥सक्षौद्रं शाल्मलीवृन्तकषायं वा हिमाह्वयम् ॥ अथवा इन्द्रजवोंके ४ तोले रसको पकाके पान करावे ॥१९॥ मांसके रसको खानेवाला मनुष्य पित्तके उदररोगको सत्काल जीतताहै अथवा शहदसे संयुक्त नागरमोथेके काथको पीवै ॥ १० ॥ अथवा शाल्मलीके तोके काथको शहदसे संयुक्त कर अथवा शीतकषायको शहदसे संयुक्त कर पान करावै ॥ किराततिक्तकं मुस्तं वत्सकं सुरसाजनम् ॥६१॥कटङ्कटेरीं ह्री बेरं बिल्वमध्यं दुरालभाम् ॥तिलान्मोचरसंरोधं समंगां कमलोत्पलाम्॥६२॥ नागरं धातकीपुष्पं दाडिमस्य त्वगुत्पलम् ॥ अर्द्धश्लोकः स्मृता योगाः सक्षौद्रास्तण्डुलाम्बुना ॥६३॥ और चिरायता नागरमोथा कूडाकी छाल रशोत इन्होंको ॥ ६१ ॥ और दारुहलदी नेत्रवाला बेलगिरीका गूदा धमासा इन्होंको और तिल मोचरस लोध मजीठ कमल नीलेकमलको ॥६२ ॥ सुंठ धवके फूल अनारकी छाल कमलको ये चारों वाथ शहदसे संयुक्त कर चावलोंके पानीके संग पान करने योग्य ॥ ६३ ॥ निशेन्द्रयवरोधैलाकाथः पक्कातिसारनुत् ॥ रोधाम्बष्ठाप्रियङ्ग्वादिगणास्तद्वत्पृथपिवेत् ॥६४॥ हलदी इन्द्रजव लोध इलायचीका काथ पक्कातिसारको नाशताहै और लोध पाठा प्रियंग्वादिगणको शहदसे संयुक्त कर अलग अलग चावलोंके पानी के संग पावै ॥ ६४ ॥ कटुंगवल्कयष्टयाह्वाफलिनीदाडिमांकुरैः॥पेयाविलेपीखलकान्कुत्सिदधिदाडिमान् ॥६५॥ तद्वदधित्थबिल्वाम्रजम्बुमध्यैः प्रकल्पयेत्॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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