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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । ( ५६३) रसान्मुष्टथंशकान्सम्प्रन् ॥ १०५ ॥ तैश्च शक्रयवान्पूते ततो दर्वी प्रलेपनम् ॥ पक्त्वावलेहं लीड्ढा च तं यथाग्निबलं पिबेत् ॥१०६॥पेयां मण्डं पयश्छागं गव्यं वा छागदुग्धभुक् । लेहोऽयं शमयत्याशु रक्तातीसारपायुजान् ॥ १०७ ॥ बलवद्रक्तपित्तं च दूर्ध्वमोऽपि वा ॥ और आकाशसे वर्षे पानीमें गीली कूडाकी त्वचाको पकावै ॥ १०४ ॥ जबतक पकायै तबतक वह त्वचा रससें रहित होजावे पीछे सूक्ष्म चूर्णित किये मजीठ, प्रियंगु मोचरसको चार चार तोले परिमाणसे लेवै ॥ १०५ || और वस्त्रसे छाने हुये पूर्वोक्त काथमें ४ तोले इंद्रजवोंको मिलाके पकावै पीछे जब कडछीपे चिपकने लगे तब पका जान अग्निसे उतार जठराग्नि और बलके अनुसार चाटकर ॥ १०६ ॥ पीछे बकरीके दूधका पान करता हुआ मनुष्य अग्निके बलके अनुसार पेया मंड बकरीका और गायका दूध पीवैं यह लेह रक्तातिसार रक्तकी बवासीर ॥ १०७ ॥ और बढा हुआ रक्तपित्त और ऊर्ध्वगत रक्तपित्त अधोगत रक्तपित्तको नाशता है | कटजत्वक्तुलां द्रोणे पचेदष्टांशशेषिताम् ॥ १०८ ॥ कल्कीकृत्य क्षिपेत्तत्र तार्क्ष्यशैलं कटुत्रयम् ॥ रोधद्वयं मोचरसं वलां दाडिम जां त्वचम् ॥ १०९ ॥ बिल्वकर्कटिकां मुस्तं समङ्गां धातकी फलम् ॥ पलोन्मितं दशपलं कुटजस्यैव च त्वचः ॥११०॥ त्रिंशत्पलानि गुडतो घृतात्पूते च विंशतिः ॥ तत्पक्कं लेहतां यातं धान्ये पक्षस्थितं लिहन् १११ सर्वाशग्रहणीदोषश्वासकासान्नियच्छति ॥ और ४०० तोले कुडाकी छालको १०२४ तोले पानी में आठवाँ भाग शेषर है ऐसी पकावे ॥ ॥ १०८ ॥ पीछे कल्कित कियेहुये रसोत, सूंठ, मिरच, पीपल, दोनोंलोध, मोचरस, खरैहटी, अनारकी छाल ॥ १०९ ॥ बेलगिरी, नागरमोथा, मंजीठ, धवके फूल ये सब चारचार तोले और कूंडाकी छाल ४० तोले ॥ ११० ॥ और गुड १२० तोले और छानेटुये काथमें ८० तोले घृत इन सबको मिलावें, पीछे पका हुवा लेहभावको प्राप्त होजावै तब पात्रमें डाल और ढकनासे ढक अन्नके समूहमें १५ दिनोंतक स्थित करै, पीछे इस लेहको चाटताहुआ मनुष्य ॥ १११ ॥ सब प्रकारकी बवासीर ग्रहणी दोष श्वास खांसीको दूर करता है ॥ रोधं तिलान्मोचरसं समङ्गां चन्दनोत्पलम् ॥ ११२ ॥ पाययित्वादुग्धेन शालींस्तेनैव भोजयेत् ॥ यष्ट्याह्नपद्मकानन्तापयस्याक्षीरमोरटम् ॥ ११३ ॥ ससितामधु पातव्यं शीततोयेन For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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