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( ५१६ )
"अष्टाङ्गहृदये
तोले भर घृतको सिद्धकरे यह घृत वात और पित्तके रोगोंको नाशता है ॥ २६ ॥ अथवा यह मांसघृत अकेला पान किया अथवा मांसके रसके संग पानकिया खांसी श्वास स्वरभ्रंश शोष हृद्रोग पशलीशूलको जीतता है ॥ २७ ॥
एलाजमोदात्रिफलासौराष्ट्रीव्योषचित्रकान् ॥ सारानरिष्टगायत्रीशालबीजकसम्भवान् ॥ २८ ॥ भल्लातकं विडंगं च पृथगष्टपलोन्मितम् ॥ सलिले षोडशगुणे षोडशांशस्थिते पचेत् ॥ २९ ॥ पुनस्तेन घृतप्रस्थं सिद्धे चास्मिन्पलानि षट् ॥ तुगाक्षीर्याः क्षिपेत्रिंशत्सिताया द्विगुणं मधु ॥ ३० ॥ घृतात्रिजातात्रिपलं ततो लीढं खजाहतम् ॥ पयोऽनुपानं तत्प्राहे रसायनमयन्त्रणम् ॥३१ ॥ मेध्यं चक्षुष्यमायुष्यं दीपनं हन्ति चाचिरात् ॥ मेहगुल्मक्षयव्याधिपाण्डुरोगभगन्दरान् ॥ ३२॥ इलायची अजमोद त्रिफला तुरटी सूंठ मिरच पीपल चीता और नींब खैरशाल बिजोरा इन्हों से उपजे सार ॥ २८ ॥ भिलावाँ वायविडंग ये सब अलग अलग ३२ तोले लेकर १६ गुने पानी में पकावे जब पकने में सोल १६ वां हिस्सा पानी शेष रहै तब ॥ २९ ॥ फिर तिस पानी में ६४ तोलभर घृतको पकाने और सिद्ध होनेपे २४ तोले वंशलोचन १२० तोले मिसरी १२८ तोले शहद ॥ २० ॥ और बारह तोले दालचीनी इलायची तेजपात इन्होंका चूर्ण मिला और कडछीसे आलोोडतकर प्रातः काल दुपहरतक चाटै और दूधका अनुपान करे यह रसायन परि श्रमको हरता है ॥ ३१ ॥ और पवित्र है नेत्रों में तथा आयुमें हितहै और दीपन है शीघ्रतासे प्रमेह गुल्म क्षयरोग पांडुरोग भगंदरको नाशता है ॥ ३२ ॥
ये च सर्पिर्गुडाः प्रोक्ताः क्षते योज्याः क्षयेऽपि ते ॥ त्वगेलापिप्पलीक्षीरीशर्करा द्विगुणाः क्रमात् ॥ ३३ ॥ चूर्णिताः भक्षिताः क्षौद्रसर्पिषा च बले हिताः ॥ स्वर्य्याः कासक्षयश्वासपावरुकफनाशनाः ॥ ३४ ॥ क्षतमें जो गुत और गुड कहे हैं वे सब इस क्षयमें भी युक्त करने योग्य हैं और दालचीनी इलायची पीपल वंशल चन खांड ये सब क्रमसे दुगुने दुगुने लेकर ॥ ३३ ॥ चूर्णित बना शहद और घृतसे मिला भाक्षत किये बलमें हित हैं और स्वरमें हित हैं और खाँसी क्षय श्वास पशलशूिल कफको नाशते हैं ॥ ३४ ॥
विशेषात्स्वरसादस्य नस्यधूमादि योजयेत् ॥ तत्रापि वातजे कोष्णं पिबेदौत्तरभक्तिकम् ॥३५॥ कासमर्दकवार्त्ता की मार्कव
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