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चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (५१५) पाश्र्वासशूलघ्नं कासश्वासज्वरापहम् ॥ पञ्चभिःपञ्चमूलैर्वाशताद्यदुदियाघृतम् ॥२०॥ खजूर मुनक्कादाख मुलहटी फालसा इन्होंकरके सिद्धकिया और पीपलोंके चूर्ण करके युक्त घृत स्वरका बिगडना खांसी श्वास ज्वरको नाशताहै ॥ १८॥ दशमूलकरके कथित किये दूधसे जो घृत नवीन निकलता है तिसमें पीपल और शहद मिला चाटै तो यह स्वरको अत्यंत जागता है ॥१९॥
और शिर पशली कंधके शूलोंको नाशताहै और खांसी श्वास ज्वरको नाशता है, अथवा पंचप्रकारके पंचमूलों करके कथित किये दूधसे जो घृत नवीन निकलता है वहभी पूर्वोक्त गुणोंको करताहै॥२०॥
पञ्चानां पञ्चमूलानां रसे क्षीरचतुर्गुणे॥ सिद्धं सर्जियत्येतद्यक्ष्मिणः सप्तकं बलम् ॥ २१॥पञ्चकोलयवक्षारषट्पलेन पचेद्वृतम्॥प्रस्थोन्मितं तुल्यपयः स्रोतसा तद्विशोधनम् ॥२२॥गुल्मज्वरोदरप्लीहग्रहणीपाण्डुपीनसान्॥श्वासकासाग्निसदनश्वयथूर्द्धानिलाञ्जयेत्॥२३॥रास्नाबलागोक्षुरकस्थिराव भुवारिणि ॥ जीवन्तीपिप्पलीगर्भ सक्षीरं शोषजिदघृतम् ॥ २४ ॥
अश्वगन्धाच्छृतात्क्षीराघृतं च ससितं पयः॥ पांचप्रकारके पंचमूलोंके रसमें और चौगुने दूधमें सिद्धकिया घृत राजरोगीके पीनस श्वास खांसी कंधाशूल शिरशूल पीडा अरुचीको जीतता है ॥ २१॥ पीपल पीपलामूल चव्य चीता सुंठ जवाखार इन्होंके २४ तोले कल्क करके ६४ तोले दूध करके ६४ तोले भर सिद्ध किया घृत स्रोतोंको शोधताहै ॥ २२॥ गुल्म ज्वर उदर रोग प्लीहरोग ग्रहणीरोग पांडुरोग पीनस श्वास खांसी मंदाग्नि शोजा ऊर्ध्ववातको जीतताहै ॥ २३ ॥ रायसण खरेहटी गोखरू शालपर्णी शांठी इन्होंके काथमें और जीवंती तथा विप्पलीके कल्कमें और दूध सिद्धकिया घृत शोषको जीतताहै ॥ २४ ॥ असगंध करके कथितकिये दूधसे उपजे घृतमें मिसरी और दूध मिला पी तो शोषरोग का नाश होताहै ॥
साधारणामिषतुलां तोयद्रोणद्वये पचेत् ॥ २५॥ तेनाष्टभाग शेषेण जीवनीयैः पलोन्मितःसाधयेत्सर्पिषः प्रस्थं वातपित्ता मयापहम् ॥ २६ ॥ मांससपिरिदं पीतं युक्तं मासरसेन वा ॥ कासश्वासस्वरभ्रंशशोषहृत्पार्श्वशूलजित् ॥ २७ ॥ ४०० तोलेभर साधारण मांसको लेके २०४८ तोले पानीमें पकावै ॥ २५ ॥ जब आठवाँ भाग शष्प रहै तब चार चार तोलेभर प्रमाणित जीवनीय औषधोंके कल्कको मिला पछि ६४
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