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चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । मान्॥शर्करामधुसर्पिभिः पयसा तर्पणेन वा॥३॥ द्राक्षाविदारी काश्मर्यमांसानां वा रसैर्युतान् ॥ मैनफलकरके संयुक्त दूधकरके अथवा मधुरद्रव्यकरके संयुक्त मैनफलकरके अथवा मैनफलसे यक्त मांसके रसकरके अथवा वमन संज्ञक औषधोंमें सिद्धकरी और घृतसे संयुक्त यवागूकरके ॥ २ ॥ राजरोगी मनुष्य बमनकरै और निशीत मालविकानिशोत अमलतासको खांड शहद घृतमें मिला विरेचन देवे, अथवा इन द्रव्योंको दूधके संग अथवा तर्पणसंज्ञक द्रव्यके संग बिरेचनको देवै ॥ ३ ॥ अथवा दाख विदारीकंद, कंभारी मांस इन्होंके रससे संयुक्त किये निशोथ मालविकानिशोथ अमलतासइन्हों करके विरेचन देवै ॥
शुद्धकोष्ठस्य युंजीत विधि बृंहणदीपनम्॥४॥ हृद्यानि चान्नपानानि वातघ्नानि लघूनि च ॥ शालिषष्टिकगोधूमयवमुद्र समोषितम्॥५॥आज क्षीरं घृतं मांसं व्यान्मांसं च शोषजित्॥ पीछे शुद्ध कोष्ठवाले मनुष्यके अर्थ बृंहण और दपिन विधिको प्रयुक्त करै॥ ४ ॥ और मनोहर वातको नाशनेवाले हलके अन्नपानीको प्रयुक्त करै और एक वर्षके पुराने शाँठीचावल गेहूं जव मूंगको प्रयुक्त करै ॥५॥ बकरीका दूध बकरीका घृत बकरीका मांस और मांसको खानेवाले जीवका मांस ये राजरोगको जीतते हैं ।।
काकोलूकवृकद्वीपिगवाश्वनकुलोरगम् ॥ ६ ॥ गृध्रभासखरोष्ट्रं च हितंछद्मोपसंहितम्॥ ज्ञातं जुगुप्सितं ताद्ध छर्दिषे न बलौजसे॥७॥
और काक उल्लू भेडिया गैंडा गाय घोडा नौल सर्प ॥ ६ ॥ गीध भास गधा ऊंटके मांस राजरोगमें हितहैं परन्तु रोगीके अर्थ कपटकरके देवै क्योंकि जानाहुआ निंदितपदार्थ छर्दिके अर्थ होजाताहै बल और पराक्रमके अर्थ नहीं होता ॥ ७ ॥
मृगाद्याः पित्तकफयोः पवने प्रसहादयः॥वेसवारीकृताःपथ्या रसादिषु च कल्पिताः॥८॥ भृष्टाः सर्षपतैलेन सर्पिषा वा यथायथम् ॥ रसिका मृदवः स्निग्धा मृदुद्रव्याभिसंस्कृताः ॥९॥ हितामौलककौलत्थास्तद्वयूषाश्च साधिताः॥ कफ और पित्तमें मृग विष्किर प्रतुद पक्षियोंके मांस हितहैं और वातमें ॥ प्रसहआदि जीवोंके मांस हितहैं, परन्तु बेसवार मसालासे संयुक्त किये और पथ्य और मांसके रस आदिमें कल्पित और ॥ ८॥ सरसोंके तेलमें अथवा घृतमें भुनेहुये और सुन्दर रसवाले और कोमल चिकने कोमल द्रव्य अर्थत् सेंधानमक आदिकरके संस्कृत ॥९॥ और मूली कुलथीसे बनेहुये यूष हितहैं ।
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