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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५१२ ) अष्टाङ्गहृदये और जो कछुक बात और कफको रहनेवाला और गरम और वातको अनुलोमित करनेवाला ॥ ५३ ॥ और अच्छीतरहसे वायुको नाशनेवाला द्रव्य है वह विशेषकरके श्वास और हिचकी - वाले मनुष्यको सेवना योग्य है ॥ ५४ ॥ सर्वेषा वृंहणे ह्यल्पः शक्यश्च प्रायशो भवेत् ॥ नात्यर्थं शमनेSपायो भृशोऽशक्यश्च कर्षणे ॥ ५५ ॥ शमनैबृंहणैश्चातो भयिष्ठं तानुपाचरे ॥ हिचकी और श्वासकरके पीडित सब मनुष्यों की चिकित्सा में विधान किये बृंहणमें देवयोगसे अन्यरोग प्रगट होजावे तब वह प्रायताकरके अस तथा सुखसाध्य है और तिन्हीं हिचकी और श्वासके शमनरूप औषध आदि के करनेमें दैवयोगसे नाश होजावे वह न अत्यर्थ और न अतिशय करके जानना किंतु मध्यमवृत्ति करके हिचकी और श्वासकी शांतिके अर्थ है और वैद्यकी किई चिकित्सा करने से जो रोग उपजे वह अत्यंत साध्य जानना || १५ || इसीकारणले हिचकी और श्वासको खांसी इवासको शमन और बृंहण औषधोंसे उपान्तरितकरे | कासश्वासक्षेयच्छर्दिहिध्माश्चान्योऽन्यभेषजैः ॥ ५६ ॥ अथवा खांसी श्वास क्षय छर्दि हिचकी इन्हों को आपस में कहेहुये यथोक्त औषधों करके इन सब रोगोंको उपचारित करे जैसे खाँसी के औषधोंकरके श्वास आदिको और श्वास आदि कहे हुये औषधोंकरके खांसीको उपचारित करे ऐसे जानलेना ॥ १६ ॥ इति बेरीनिवासिवैद्य पंडित रविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहिता भापाटीकायांचिकित्सास्थाने चतुर्थोऽध्यायः ॥ ४ ॥ पञ्चमोऽध्यायः । अथातो राजयक्ष्मादिचिकित्सितं व्याख्यास्यामः । इसके अनंतरराजयक्ष्मादिचिकित्सितनामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे । बलिनो बहुदोषस्य स्निग्धस्विन्नस्य शोधनम् ॥ ऊर्ध्वाधो यक्ष्मिणः कुर्य्यात्सस्नेहं यन्नकर्शनम् ॥ १ ॥ बलवाले और बहुतदोषोंवालेके स्नेह और स्वेदको सेवितकिये राजरोगीके स्नेह से सहित और जो देहको न गिरावै ऐसा वमन व विरेचन देना योग्य है ॥ १ ॥ पयसा फलयुक्तेन मधुरेण रसेन वा ॥ सर्पिष्मत्या यवाग्वा वा वमनद्रव्यसिद्धया ॥ २ ॥ वमेद्विरेचनं दद्यात्रिवृच्छयामानृपडु For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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