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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४९६) अष्टाङ्गहृदयेहृद्रोग शूलको नाशता है ॥१०४॥ और मूत्रकृच्छ्र प्रमेह बवासीर खांसी शोष क्षयको नाशताहै ।। और धनुष स्त्री मदिरा भार मार्गगमनसे खेदित किये मनुष्योंको बल और मांसको देताहै॥१०॥ मधुकाष्ठपलद्राक्षाप्रस्थक्वाथे प्रचेघृतम्। पिप्पल्यष्टपले कल्के प्रस्थं सिद्धे च शीतले ॥१०६ ॥ पृथगष्टपलं क्षौद्रशर्कराभ्यां विमिश्रयेत् । समसक्तुक्षतक्षीणरक्तगुल्मेषु तद्धितम् ॥१०७॥ मुलहटी ३२ तोले दाख ६४ तोले इन्होंके क्वाथमें और ३२ तोले पीपलोंके कल्कमें ६४ तोले घृतको पकावै सिद्रहोने और शीतलहोनेपै ॥ १०६ ॥ ३२ तोले शहद और ३२ तोले खांडमें मिश्रित करै पीछे बराबरके सत्तुओंमें युक्त किया यह घृत क्षतक्षीण रक्तगुल्ममें हितहै ॥ १०७ ।। धात्रीफलविदारीक्षुजीवनीयरसाढतात् । गव्याजयोश्चपयसोः · प्रस्थं प्रस्थं विपाचयेत् ॥१०८॥ सिद्धपूते सिताक्षौद्रं द्विप्रस्थं विनयेत्ततः॥ यक्ष्मापस्मारपित्तासृकासमेहक्षयापहम् ॥१०९॥ वयः स्थापनमायुष्यं मांसशुक्रवलप्रदम् ॥ आंवला विदारीकंद ईख जीवनीयगणके औषधोंका रस ६४ तोले गाय तथा बकरीका दूध६४ तोले इन्होंमें घृतको पकावै ॥ १०८ ॥ सिद्भहोनेपै वस्त्रमें छान ६४ तोले मिसरी६४ तोले शहद मिलावै, यह घत राजयक्ष्मा मृगीरोग रक्तपित्त खांसी प्रमेह क्षयको नाशताहै ॥ १०९ ॥ और अवस्थाको स्थापित करताहै और आयुमें हितहै और मांस वीर्य बलको देताहै ॥ घृतं तु पित्तेऽभ्यधिके लिह्याद्वाताधिके पिवेत्॥११०॥ लीढं निवापयेत्पित्तमल्पत्वाद्धन्ति नानलम् ॥आक्रामत्यनिलं पीतमूष्माणं निरुणद्धि च ॥ १११॥ और पित्तकी अधिकतामें घृतको चाटै और वातकी अधिकता घृतको पावै ॥ ११० ।। अल्पपनेसे चाटाहुवा घृत पित्तको शांतकरताहै और अग्निको नहीं नाशताहै और पियाहुआ घृत वातको उलंवित करताहै और जठराग्निको रोकताहै ।। १११ ॥ क्षामक्षीणकृशाङ्गानामेतान्येव घृतानि तु ॥ त्वक्षीरीपिप्पली लाजचूर्णैः पानानि योजयेत् ॥ ११२ ॥ सर्पिर्गुडान्समध्वंशान्कृत्वा दद्यात्पयोनु च ॥ रेतो वीर्य बलं पुष्टिं तैराशतरमानुयात् ॥ ११३॥ दुबले क्षीणाअगंवाले मनुष्योंको यह सब पूर्वोक्त घृत वंशलोचन पीपल धानकी खीलोंके चूरणके संग पीनेको युक्त करै ॥ ११२ ॥ घृत और गुडको शहदके अंशके साथ देवै और दूधका अनुपान करै, इन्होंकरके वीर्य पराक्रम बल पुष्टीको मनुष्य शीघ्रतासे प्राप्त होताहै।।११३॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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