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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम्। (४९५) ईमधुनः शीते शर्कराई तुलारजः॥९७॥ पलार्द्धकं च मारचं त्वगेलापत्रकेसरम् ॥ विनीय चूर्णितं तस्माल्लिह्यान्मात्रां यथाबलम् ॥९८॥ अमृतप्राशमित्येतन्नराणाममृतं घृतम् ॥ सुधामृतरसं प्राश्यं क्षीरमासरसाशिना ॥ ९९ ॥ नष्टशकक्षतक्षीणदुर्बलव्याधिकर्शितान् ॥ स्त्रीप्रसक्तान्कृशान्वर्णस्वरहीनाश्च बृंहयेत् ॥१००॥ कासहिध्माज्वरश्वासदाहतृष्णास्रपित्तनुत् ॥ पुत्रदंछर्दिमू हृद्योनिमूत्रामयापहम् ॥१०१॥ और जीवनीयगणके सब औषध मंठ शतावरी वीरा शांठी ॥ ९४ ॥ खरेहटी भारंगी कौंच ऋद्धि कचूर मुशली पीपल सिंघाडा दूधी लघुपंचमूल||९५॥दाख नारीयल और फिरोट मधुर स्निग्ध बृंहण औषध ये सब एक एक तोलेभर ले महीन कल्क बना तिसके संग ६४ तोलेभर घृतको पकावै ॥ ९६ ॥ और दूध आँवला विदारीकंद इसका रस बकरेके मांसका रस इन्होंसे युक्त किये तिस व्रतको पकावै पीछे शीतल होनेपै ३२ तोले शहद २०० तोले खांड ।। ९७ ।। और २ तोले मिरच और दो दो तोले दालचीनी तेजपात इलायची नागकेशर ये सब ले चूरण बना पूर्वोक्तमें मिला उसकी बलके अनुसार मात्राको चाटै ॥ ९८ ॥ यह अमृतप्राशवत मनुष्यों को अमृतरूप है और दूध और मांसके रसको खानेवाले मनुष्यको अमृतके समान रसवाला यह घत खाना योग्य है ॥ ९९ ॥ और नष्टवीर्यवाला और क्षतक्षीण और दुर्बल और व्याधिसे कार्षित तथा स्त्रियोंमें प्रसक्त कृशवर्ण तथा स्वरकरके हीन मनुष्योंको पुष्ट करता है ॥ १०० ॥ और . पुत्रको देता है और खांसी हिचकी ज्वर श्वास दाह तृषा रक्तपित्त छर्दैि मूर्छा हृद्रोग योनिरोग मूत्ररोगको नाशता है ।। १०१॥ श्वदंष्ट्रोशीरमञ्जिष्ठाबलाकाइमर्यकतृणम् ॥ दर्भमूलं पृथक्पर्णी पलाशर्षभका स्थिरा ॥१०२॥ पालिकानि पचेत्तेषां रसे क्षीरचतुर्गुणे ॥ कल्कैः सुगुप्ता जीवन्तीमेदकर्षभजीवकैः ॥ ॥१०॥ शतावर्यार्द्धमृद्वीकाशर्कराश्रावणीबिसैः॥प्रस्थः सिद्धो घृताद्वातपित्तहृद्रोगशूलनुत् ॥ १०४ ॥ मूत्रकृच्छ्रप्रमेहार्शः कासशोषक्षयापहः॥ धनुः स्त्रीमद्यभाराध्वखिन्नानां बलमांसदः॥१०५॥ गोखरू खश मजीठ खरेहटी कंभारी कतॄण डाभकी जड पृश्निपणी ढाक ऋषभक शालपर्णी ॥ १०२ ॥ इन्होंके रसमें चारगुणा दूध मिला पूर्वोक्त औषध चारचार तोले भर ले पकावै और काच जीवंती मेदा ऋषभक जीवक ॥ १०३ ॥ शतावरी ऋद्धि मुनक्कादाख खांड मुंडी कमलकी डांडी इन्होंके कल्क बना पूर्वोक्तमें मिलावै पीछे तिसमें ६४ तोलेभर सिद्धकिया घृत वातपित्त For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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