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(४९४)
अष्टाङ्गहृदये
॥ ८७ ।। शहदको क्षीण और क्षत और कृष मनुष्य चाटे और गरम किये दूधका अनुपान करे और वही मनुष्य मांसको खानेवाले जीवके मांसके नियूहको घृतमें भूनके पीवै ॥ ८८ ॥ परन्तु पीपल और शहदसे संयुक्त किये तिस नियूह अर्थात् क्वाथको पीवै यह काथ मांस और रक्तको बढाताहै ॥
न्यग्रोधोदुम्बराश्वत्थप्लक्षशालप्रियंगुभिः ॥८९॥ तालमस्तक जम्बूत्वक्प्रियालैश्च सपद्मकैः ॥ साश्वकर्णैः शृतात्क्षीरादद्याजातेनसर्पिषा॥९०॥शाल्योदनक्षतोरस्काक्षीणशुक्रबलेन्द्रियः॥
और बड पीपलवृक्ष गूलर पिलखन अर्जुनवृक्ष प्रियंगुवृक्ष करके ॥ ८९ ॥ और ताडका मस्तक जामुनकी छाल चिरोंजी पद्म करालवृक्ष करके पकायेहुये दूधसे उत्पन्नहुये घृतके संग ॥ ९० ॥ फटीहुई छातीवाला और वर्यि बल इंद्रियकी क्षीणतावाला मनुष्य शालीचावलोंको खावै।।
वातपित्तार्दितेऽभ्यंगो गात्रभेदैर्वृतैर्मतः ॥ ९१॥
तैलैश्चातिलरोगन्नैः पीडिते मातरिश्वना ॥ और वातपित्त करके पीडितमें और गात्रके भेदमें घृतोंकरके मालिशकरना माना है ॥ ९१ ।। वायुकरके पीडितहुये अंगमें वातरोगको नाशनेवाले तैलोंकरके अथवा घृतों करके मालिश करना उचित है ॥
हृत्पाश्र्वार्तिषु पानं स्याज्जीवनीयस्य सर्पिषः ॥ ९२ ॥
कुर्यादा वातरोगनं पित्तरक्तविरोधि यत् ॥ और हृदय तथा पशलीकी पीडाओंमें जीवनयिगणके औषधोंमें सिद्ध किये घृतके पानको ॥९२ ॥ करना अथवा वातरोगको नाशनेवाला और पित्तरक्तका विरोधी कर्म करना ॥
यष्टयाह्वनामबलयोः क्वाथे क्षीरे समे घृतम् ॥ ९३॥
पयस्यापिप्पलीवांशीकल्कैः सिद्धं क्षते हितम् ॥ मुलहटी और बडी खरेहटीके क्वाथमें बराबरका दूध ॥ ९३ ॥ और दूधी पीपल वंशलोचनका कल्क मिला तिसमें सिद्ध किया घृत क्षतकी खांसीमें हित है ॥
जीवनीयो गणः शुण्ठी वरी वीरा पुनर्नवा ॥ ९४ ॥ बला भाी स्वगुप्ता शठी चामलकी कणा॥शंगाटकं पयस्या च पञ्चमूलं च यल्लघु ॥९५॥ द्राक्षक्षौडादि च फलं मधुरस्निग्धबृहणम् ॥ तैः पचेत्सर्पिषः प्रस्थं कर्षांशैः श्लक्ष्णकल्कितैः ॥ ९६ ॥ क्षीरधात्री विदारीक्षुच्छागमांसरसान्वितम्॥प्रस्था
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