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चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (४९७) वीतत्वगस्थिकूष्माण्डतुला स्विन्ना पुनः पचेत्॥ घट्टयन्सर्पिषः प्रस्थे क्षौद्रवर्णेऽत्र च क्षिपेत्॥११४॥खण्डाच्छतं कणाशुण्ठ्योपिलं जीरकादपि ॥ त्रिजातधान्यमारचं पृथगड़ पलांशकम् ॥११५॥ अवतारितशीते च दत्त्वा श्रौद्रं घृतार्द्धकम्॥खजेना मथ्य च स्थाप्य तनिहन्त्युपयोजितम् ॥ ११६ ॥ कासहिध्मा ज्वरश्वासरक्तपित्तक्षतक्षयान् ॥ उरःसन्धानजननंमेधास्मृति वलप्रदम्॥११७॥ अश्विभ्यां विहितं हृद्यं कूष्माण्डकरसायनम् ॥ त्वचा और गुठलीसे रहित कोहला अर्थात् पेठेको चारसी ४०० तोलेभर ले पीछे अग्निपै स्वेदितकार ६४ तोले वृतमें घटितकरताहुवा फिर पकावै और जब शहदके वर्ण हो जाये तब यह वक्ष्यमाण औषधि मिलावे ।। १ १४॥ खांड ४०० तोले पीपल और सूंठ आठ२ तोले जीरा ८ तोले दालचीनी इलायची तेजपात धनियां मिरच ये सब दो दो तोले ॥११५ ॥ ये सब मिलावै पीछे आग्निसे उतार शीतल होनेपै घृतसे आधा शहद मिलाके दंडेसे मथित करै और सुंदर पात्रमें स्थापितकरै पीछे प्रयुक्त किया वह रसायन खांसी हिचकी ज्वर श्वास रक्तपित्त वातक्षयको नाशताहै और फटीहुई छातीको जोडताहै और बुद्धि स्मृति बलको देताहै ॥ ११६ ॥ ॥ ११७ ॥ यह मनोहररूप कूष्मांडकरसायन अश्विनीकुमारोंने रचाहै ॥
पिबेन्नागबलामूलस्थाद्धकर्षाभिवर्धितम्।। ११८॥ पलं क्षीरयुतं मासं क्षीरवृत्तिरनन्नभुक्॥ एष प्रयोगः पुष्टयायुर्बलवर्णकरःपरम्॥११९ ॥ मण्डूकपाःकल्पोऽयं यष्टया विश्वौषधस्य च॥
और बडी खरेहटीकी जडको ४ तोले नित्यप्रति आधेतोलेभर बढाके ॥ ११८ ॥ दूधके संग एकमहीनातक पी और दूधका भोजनकर और अन्नको खाये नहीं यह प्रयोग पुष्टि आयु बल वर्णको अत्यंत करताहै।।११९॥ ऐसेही मंडूकपर्णीका तथा मुलहटीका तथा शुठीका कल्पकरना योग्य है ।।
पादशेषं जलद्रोणे पचेन्नागबलातलाम्॥१२०॥ तेन क्वाथेन तुल्यांशं घृतं क्षीरेण पाचयेम् ॥ पलाद्धिकैश्चातिबलावला यष्टीपुनर्नवैः ॥१२१॥ प्रपौण्डरीककाश्म>प्रियालकपिकच्छुभिः॥अश्वगन्धासिताभीरुमेदायुग्मत्रिकण्टकैः॥१२२॥ काकोलीक्षीरकाकोलीक्षीरशुक्लाद्विजीरकैः ॥ एतन्नागवलासर्पिः पित्तरक्तक्षतक्षयान् ॥१२३॥ जयेत्तृड्भ्रमदाहांश्च बलपुष्टिकर परम् ॥ वर्ण्यमायुष्यमोजस्यं वलीपलितनाशनम्॥१२४॥ उपयुज्य च षण्मासान्वृद्धोऽपि तरुणायते ॥
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