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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४६०) अष्टाङ्गहृदयेधमासा, गिलोय, नागरमोथा, झूठका, क्वाथ वातवरमें हित है ॥ २१ ॥ अथवा पीपलामूल, गिलोय झूठको और लघुपंचमूलको वातवरमें देना हित है, और पित्तज्वरमें इन्द्रजव नागरमोथा हित है ॥ १२ ॥ कुटकी, शहद, नागरमोथा, पित्तपापडा, धमांसा, चिरायता येभी देने हित है और वत्सकादि गण अर्थात् कूडाकी छाल मृर्वा भारंगी ये कफवरमें हित हैं, ॥ ५३ ।। अथवा वांसा नागरमोथा अदरख धमासा ये देने हितहैं और पीडा बंधसे युक्त वातकफज्वरमें ॥ ५४ ॥ हर. पीपलामूल अमलतास कुटकी नागरमोथा ये दीपन पाचन औषध देने हितहैं । द्राक्षामधूकमधुकं रोधकाश्मय॑सारिवाः॥५५॥मुस्तामलकही बेरपद्मकेसरपद्मकम् ॥मृणालचन्दनोशीरनीलोत्पलपरूषकम् ॥५६॥फाण्टो हिमो वा द्राक्षादिर्जातीकुसुमवासितः ॥ युक्तो मधुसितालाजैर्जयत्यनिलपित्तजम् ॥५७॥ ज्वरं मदात्ययं छर्दिमूर्छादाहं श्रमं भ्रमम् ॥ ऊर्ध्वगं रक्तपित्तं च पिपासां कामलामपि ॥ ५८॥ और दाख मुलहटी महुआवृक्षकी छाल, लोध, खंभारी, सारिवा॥५५ ।। नागरमोथा, आंवला, नेत्रवाला, नागकेशर, पद्माक, कमलकी डांडी, चंदन, खश, नीला कमल, फालसा ।। ५६॥ द्राक्षादि औषधगणोंका फांट और हिम अर्थात् तत्काल बनाके वस्त्रों छानाहुआ फांट कहता है और रात्रिमें भिगोके प्रातःकाल छानाहुआ हिम कहाताहै, सो इन्होंको चमेलीके पुष्पोंसे सुगंधितकर और शहद मिसर धानखील मिलाके दे देनेसे वातपित्तज्वरका नाशहोताहै॥५७॥ और ज्वर मदात्यय अर्दै मूर्छा दाह श्रम भ्रम ऊर्धस्थानमें प्राप्त हुआ रक्तपित्त पिपासा कामलाकोभी नाशताहै ॥१८॥ पाचयेत्कटुकां पिष्टा कर्परेऽभिनवे शुचौ ॥ निष्पीडितो घृतयुतस्तद्रसो ज्वरदाहजित् ॥ ५९॥ कुटकीको जलमें पीस नवीन और पवित्र कर्पर अर्थात् मट्टीके टीकरेमें पका फिर निचोडके तिसे रसमें घृत मिलादेनेसे ज्वर और दाहका नाश होताहै ।। ५९ ॥ कफवाते वचा तिक्ता पाठारग्वधवत्सकाः ॥ पिप्पलीचूर्णयुक्तो वा काथश्छिन्नोद्भवोद्भवः ॥ ६॥ और कफवातज्जरमें वच कुटकी पाठा अमलतास कूडाकी छान्ट पीपमूलका चूर्णसे युक्त गिलोयका काथ बनाके देना हित है ॥ ६ ॥ व्याघीशुण्ठयमृताकाथः पिप्पलीचूर्णसंयुतः। वातश्लेष्मज्वरश्वासकासपीनसशूलजित् ॥ ६१ ॥ और कटेली सूंठ गिलोयका काथ, पीपल के चूर्णसे युक्त दिया हुआ वातकफज्वर श्वास खांसी पनिस शूलका नाश करता है ॥ ११ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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