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चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (४६१) पथ्या कुस्तुम्बरी मुस्ता शुंठी कतृणपर्पटम् ॥ सकटफलव
चा भागीदेवाहूं मधुहिनुमत् ॥ ६२॥ कफवातज्वरेष्वेव कुक्षिहृत्पाववेदनाः ॥ कण्ठामयास्यश्वयथुकासश्वासान्नियच्छति ॥६३ ॥
और हरडै धनियां नागरमोथा रोहिसतृण पित्तपापडा कायफल वच भारंगी देवदारु इन्होंका काथ शहद और हींगसे युक्त दिया हुआ ।। ६२ ।। कफवातज्वर कुक्षि हृदय पशलीकी पीन कंठरोग मुखरोग शोजा खांसी श्वासको दूर करताहै ॥ ६३ ॥
आरग्वधादिः सक्षौद्रः कफपित्तज्वरं जयेत् ॥
तथा तिक्ता वृषोशीरत्रायन्तीत्रिफलामृताः॥६४ ॥ और अमलतास इन्द्रजव इत्यादिकोंमें सिद्ध किया हुआ काथ शहदके संग देनेसे कफ पित्तज्वरको नाशता है अथवा कुटकी वाशा खस लज्जावन्ती त्रिफला गिलोय इनका काधभी पित्तज्वरको नाशता है ।। ६४ ॥
सन्निपातज्वरे व्याघ्रीदेवदारुनिशाधनम् ॥
पटोलपत्रनिम्बत्ववित्रफलाकटुकायुतम् ॥६५॥ और सन्निपातञ्चरमें कटेहली देवदारु हलदी नागरमोथा परवलके पत्ते नींबकी छाल त्रिकला कुटकीसे युक्त काथ देना चाहिये ॥ १५ ॥
नागरं पौष्करं मूलं गुडूची कण्टकारिका ॥
सकासश्वासपातिौ वातश्लेष्मोत्तरेज्वरे ॥६६॥ झूठ पोहकरमूल गिलोय कटेहलीका काथ खांसी श्वास पशलीकी पीडासे युक्त वात कफाधिक सन्निपातज्वरको नाशता है ।। ६६ ।।
मधूकपुष्पे मृद्वीका त्रायमाणा परूषकम् ॥ सोशीरतिक्तात्रिफला काश्मयं कल्पयेद्धिमम् ॥ ६७॥ कषायं तं पिबन्काले ज्वरान्सर्वान्व्यपोहति ॥
और महुआके पुष्प मुनक्कादाख त्रायमाण फालसा खश कुटकी त्रिफला खंभारी इन्होंका पहिलेकी तरह हिम बनाके देना हित है ।।६७॥ इसके यथार्थ कालमेंपीनेसे संपूर्णज्वरोंका नाश होताहै।।
जात्यामलकमुस्तानि तद्वद्धन्वयवासकम् ॥ ६८॥ बद्धविटकटुकाद्राक्षात्रायन्तीत्रिफलागुडान् ॥
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