________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम्
मृदुज्वरो लघुर्देहश्चलिताश्च मला यदा ॥ ४४ ॥ अचिरज्वरितस्यापि भेषजं कारयेत्तदा ॥
परंतु मृदुज्वर हलका देह हो और चलायमान मलहो || ४४ || और ज्वरको छः दिन से ज्यादे दिन नहीं हुये हों तब औषध करनी चाहिये ||
(४५९ )
मुस्तया पर्पटं युक्तं शुण्ठ्या दुस्पर्शयापि वा ॥ ४५ ॥ पाक्यं शीतकषायं वा पाठोशीरं सवालकम् ॥ पिबेत्तद्वच्च भूनिम्बगु डूची मुस्तनागरम् ॥ ४६ ॥ यथायोगमिमे योज्याः कषाया दोषपाचनाः । ज्वरारोचकतृष्णास्यवैरस्यापक्तिनाशनाः॥४७॥ नागरमोथा, पित्तपापडा, सूंठ, धमासा ॥ ४५ ॥ इन्होंका काथ बना ठंढाकरके पीवै अथवा पाठा खश नेत्रवाला इन्होंका काथ अथवा चिरायता गिलोय नागरमोथा सूंठ इन्होंके काथको पीवै ॥ ४६ ॥ यथायोग्य करके दोषोंके पकानेवाले ये काथ युक्त करने चाहिये और ये काथ ज्वर अरुचि तृषा मुखकी विरसता पक्तिशूलके नाश करनेवाले हैं ॥ ४७ ॥
कलिङ्गकाः पटोलस्य पत्रं कटुकरोहिणी ॥४८॥ पटोलं सारिवा मुस्ताः पाठा कटुकरोहिणी ॥ पटोलनिम्बत्रिफलामृद्वीका मुस्तवत्सका ॥ ४९ ॥ किराततिक्तममृता-चन्दनं विश्वभेषजम् ॥ धात्रीसुस्तामृताक्षौद्रमर्द्धश्लोकसमापनाः॥५०॥ पञ्चैते सन्तता
For Private and Personal Use Only
दीनां पञ्चानां शमना मताः ॥
इन्द्रजव, परवल के पत्ते, कुटकी रोहिणीकर के सिद्ध कियाहुआ काथ ॥ ४८ ॥ अथवा परवल, सारिवा, नागरमोथा, पाठा, कुटकी, करके सिद्ध कियाहुआ, परवल, नींब, त्रिफला, मुनक्का दाख नागरमोथा, कूडाकी छाल ॥ ४९ ॥ चिरायता, गिलोय, चंदन, सूंठ करके और आमला, नागरमोथा, गिलोय, शहद करके सिद्ध कियाहुआ क्राथ देना चाहिये इस प्रकार इन आधे श्लोकों में समाप्त. होनेवाले ॥ ५० ॥ ये पाँच क्वाथ संतत आदि पांच ज्वरोको शमन करनेवाले कहे हैं |
दुरालभाऽमृता मुस्ता नागरं वातजे ज्वरे ॥ ५१ ॥ अथवा पिप्पलीमूलगुडूचीविश्वभेषजम् ॥ कनीयः पञ्चमूलं च पित्ते शक्र यवा घनम् ॥५२॥ कटुका चेति सक्षौद्रं मुस्तापर्यटकं तथा ॥ सधन्वयासभूनिम्बं वत्सकाद्यो गणः कफे ॥ ५३ ॥ अथवा वृष गायीशृङ्गवेरदुरालभाः ॥ रुग्विबन्धानिलश्लेष्मयुक्ते दीपन पाचनम् ॥ ५४ ॥ अभया पिप्पलीमूलशम्याककटुकाघनम् ॥