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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निदानस्थानं भापाटीकासमेतम् । (४४७ ) और गम्भीर वातरक्त में अधिक शूलसे प्रथम कांटोंसे संयुक्त और पाकवाला शोजा उपजता है और सन्धि हड्डी, मज्जामें ॥ १० ॥ छेदित करते हुए की तरह विचरता हुवा और भीतरको कुटिल करता हुआ और वेगवाला शरीरमें सब तर्फसे विचरता हुवा वायु खंज अथवा लँगडा मनुष्यको करता है ॥ ११ ॥ वातकी अधिकतावाले वातरक्तमें शूल, फुरना, चभका ये उपजते हैं और शोजाका रूखापन और कालापन और धूम्रपना, बुद्धिकी हानी हो जाती है ॥ १२ ॥ धमनि अंगुली संधि संकोचमें अंगका जकडबंधपना और अत्यन्त शूल और शीतल पदार्थका वैर और सुखका अभाव स्तंभ, कंप, सुप्ति ये होते हैं ॥ १३ ॥ रक्तशोफोऽतिरुक्तोदस्ताम्रश्चिमिचिमायते ॥ स्निग्धरूक्षैः समं नैति कण्डूक्केदसमन्वितः ॥ १४ ॥ पित्ते विदाहः संमोहः स्वेदो मूर्च्छा मदः सतृट् ॥ स्पर्शाक्षमत्वं रुयागः शोफपाको भृशो मता ॥ १५ ॥ कफे स्तैमित्यगुरुतासुप्तिस्निग्धत्वशीतताः ॥ कंडूर्मन्दा च रुग्द्वन्द्रसर्वलिंगं च संकरे ॥ १६ ॥ रक्तकी अधिकतावाले वातरक्तमें अत्यन्त शूल और चमका तांत्रेकेसा वर्ण हो जाना तथा चिमचिमाहटपनेसे संयुक्त स्निग्ध और रूखे पदार्थोंकर के शांतिको नहीं प्राप्त होनेवाला खाज और क्लेदसे युक्त शोजा उपजता है ॥ १४ ॥ पित्तक अधिकतावाले वातरक्त में विशेष दाह, विशेष मोह, पसीना, मूर्च्छा, मद, तृषा, स्पर्शका नहीं सहना, शूल, राग, शोजाका पाक, अत्यन्त उष्णता उपजती है ॥ १५ ॥ कफकी अधिकता वाले वातरक्त में स्तिमित्तपना, भारीपना, सुप्ति, स्निग्धपना, शीतलपना, खाज, मन्दपीडा उपजती है और दो दोषोंके मिलापमें दो दोषों के लक्षण वाला वातरक्त हो जाता है और तीन दोषोंके मिलाप में तीन दोषों के लक्षणोंवाला वातरक्त हो जाता है ॥ १६ ॥ एकदोषानुगं साध्यं नवं याप्यं द्विदोषजम् ॥ त्रिदोषजं त्यजे त्रावि स्तब्धमर्बुदकारि च ॥ १७ ॥ रक्तमार्ग निहंत्याशु शा खासन्धिषु मारुतः ॥ निविश्यान्योऽन्यमाचार्य्य वेदनाभिर्ह रत्यसून् ॥ १८ ॥ एक दोष से उपजा हुवा और नवीन ऐसा वातरक्त साध्य कहा है और दो दोषों से उपजा वात रक्त कष्टसाध्य कहा है और तीन दोषोंसे उपजा और झिरनेवाला स्तब्ध रूप तथा ग्रंथियोंको कर नेवाला वातरक्त असाध्य है ॥ १७ ॥ शाखा संधियोंमें वायु निवेशकरके रक्तमार्गको शीघ्र नष्ट करता है और आपस में आचरणकर वेदनाओंकर के प्राणों को हरता है ॥ १८ ॥ वाय पञ्चात्मके प्राणो रौक्षव्यायामलङ्घनैः ॥ अत्याहाराभि घाताध्ववेगोदीरणधारणैः ॥ १९ ॥ कुपितश्चक्षुरादीनामुपघातं For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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