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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . (४४६) अष्टाङ्गहृदयेशुद्धिसे और दूषित हुये रक्तसे ॥२॥ वातल और शीतल पदार्थोकरके बढाहुआ, कुपित हुमा और अपने मार्गको छोड दूसरेकै मार्गमें प्रवृत्त हुवा और दुष्ट हुये रक्तके संग रुका हुआ वायु पहिले रक्तको दूषित करता हैं ॥ ३॥ यह आढयरोग, खुडरोग, वातबलासरोग, वातरक्तरोगइन नामोंकरके विख्यात है और यह रोगके स्वभावसे पहिले पैरों के प्रति दौडता है ॥ ४ ॥ बिशेपसे हाथी आदि सवारीपै गमन आदिकरके लंबरूप पैर होजातेहैं ॥ तस्य लक्षणम् ॥ भविष्यतः कुष्ठसमं तथा सादः श्लथाङ्गता ॥ ॥५॥ जानुजङ्घोरुकव्यंसहस्तपादाङ्गसन्धिषु ॥ कण्डूस्फुरण .निस्तोदभेदगौरवसुप्तताः ॥ ६ ॥ भूत्वाभूत्वा प्रणश्यन्ति मुहुराविर्भवन्ति च ॥ पादयोर्मूलमास्थाय कदाचिद्धस्तयो रपि ॥ ७॥ आखोरिव विषं क्रुद्धं कृत्स्नं देहं विधावति ॥ ___ और अगाडीहोनेवाले वात रक्तको प्राग्रूप लक्षण कुष्ठके समान होता है, परंतु शरीरकी शिथि. लता और अंगोंकी कोमलता ॥५॥ गोडे, जांध, ऊरू, कटी, कंधा, हाथ, पैर, अंगसंधि खाज 'फुरना चभका भेद भारीपन सुप्तपना ये ॥ ६ ॥ बारंबार होके नष्ट हो जावें और बारंबार प्रगट होते रहते हैं ये वातरक्त के पूर्वरूपके लक्षण हैं और पैरोंके मूलमें कदाचित् दोनों हाथोंमें पहिले स्थितिको करके ॥ ७ ॥ पीछे सकल देहके प्रति फैलता है, जैसे क्रुद्व हुये मूसेका विष ॥ त्वङ्मांसाश्रयमुत्तानं तत्पूर्वं जायते ततः॥८॥ कालान्तरेण गम्भीरं सर्वान्धातूनभिद्रवत् ॥ कण्ड्डादिसंयुतोत्ताने त्वक्ताम्र श्यावलोहिता ॥९॥ सायामा भृशदाहोषा-. और त्वचा मांसमें आश्रय वाला उत्तानवातरक्त होता है यह पहिले उपजता है पीछे ॥ ८ ॥ अन्य कालकरके सब धातुओंके प्रति दौडता हुआ गंभीररूप वातरक्त हो जाता है और उत्तान वात रक्तमें खाज, फुरना, चभका, भेद, भारीपन सुप्तपन आदिकरके युक्त तांबा धूम्ररक्त, वर्गोंसे मिलीहुई ॥ ९॥ और विस्तारसे संयुक्त दाह अत्यंत पीडासे संयुक्त त्वचा हो जाती है गम्भीरेऽधिकपूर्वरुक् ॥श्वयथुप्रंथितः पाकी वायुः सन्ध्यस्थि मजसु ॥ १०॥ छिन्दन्निव चरत्यन्तर्वक्रीकुर्वश्च वेगवान् ॥ करोति खङ्गं पङ्गुं वा शरीरे सर्वतश्चरन् ॥११॥ वातेऽधिके धिके तत्र शूलस्फुरणतोदनम् ॥ शोफस्य रौक्ष्यकृष्णत्वश्याव .. तावृद्धिहानयः॥ १२॥ धमन्यंगुलिसन्धीनां सङ्कोचेऽङ्गग्रहोऽ तिरुकू ॥ शीतद्वेषानुपशयो स्तम्भवेपथुसप्तयः॥ १३ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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