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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निदानस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (४०९) एकादशोऽध्यायः। अथातो विद्रधिवृद्धिगुल्मनिदानं व्याख्यास्यामः। इसके अनंतर विद्रधिवृद्धिगुल्मनिदान नामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे। भुक्तैः पर्युषितात्युष्णरूक्षशुष्कविदाहिभिः॥जिह्मशय्याविचेष्टाभिस्तैस्तैश्चासृक्प्रदूषणैः॥१॥ दुष्टं त्वङ्मांसमेदोऽस्थिस्रावा सृकंडराश्रयः॥ यः शोफो बहिरन्तर्वा महामूलो महारुजः ॥ २॥ वृत्तः स्यादायतो यो वा स्मृतः षोढा स विद्रधिः॥ दोषैः पृथक्समुदितैः शोणितेन क्षतेन च ॥ ३॥ पर्युषित अर्थात् वासी, गरम, रूखा, सूखा,दाहवाला, ऐसे पदार्थोंको भोजनकरके और कुटिलतरह शयन, और चेष्टाओंकरके रक्तको दूषित करनेवाले पदार्थोंको सेवनेकरके ॥ १ ॥ दुष्टहुये मांस, त्वचा, मेद, हड्डियोंका स्त्राव, रक्त, नसोंके समूहके आधार और महामूलवाली और महापीडावाली शोजा शरीरके बाहिर और भीतर उपजती है ॥२॥ और जो गोलहो अथवा विस्तृतहो वह वात, पित्त, कफ, सन्निपात, रक्त, क्षत, करके छः प्रकारकी विद्रधी कहाती है ॥ ३ ॥ बाह्योऽत्र तत्र तत्राङ्गे दारुणो ग्रथितोन्नतः॥आन्तरो दारुण तरो गम्भीरो गुल्मवद्धनः॥ ४॥ वल्मीकवत्समुच्छ्रायी शीध्रघात्यग्निशस्त्रवत्॥नाभिबस्तियकृत्प्लीहल्लोमहृत्कुक्षिवंक्षणे॥ ॥५॥स्याद् वृकयोरपाने च वातात्तत्रातितीवरुक् ॥ श्यावा रुणश्चिरोत्थानपाको विषमसंस्थितिः ॥६॥ व्यधच्छेदभ्रमानाहस्यन्दसपणशब्दवान् ॥रक्तताम्रासितः पित्तात्तृण्मोहज्वरदाहवान् ॥७॥ क्षिप्रोत्थानप्रपाकश्च पाण्डुः कण्डूयुतः कफात् ॥ सोलेशशीतकस्तम्भजृम्भारोचकगौरवः॥ ८ ॥ चिरोत्थान विदाहश्च संकीर्णः सन्निपाततः॥सामर्थ्याच्चात्र विभजेबाह्याभ्यन्तरलक्षणम् ॥ ९॥ कृष्णस्फोटावृतः श्यावस्तीवदाहरुजा ज्वरः ॥ पित्तलिङ्गोऽसृजा बाह्यः स्त्रीणामेव तथान्तरः॥१०॥ और दोनों तरहकी विद्रधिमें नाभिआदि अंगमें दारुण गांठोंवाली और ऊंची बाह्य विधि होती है, और अत्यंत दारुण गंभीर गुल्मकी तरह करडी ॥ ४ ॥ वल्मीककी तरह शिखरवाली अग्नि तथा शस्त्रकी तरह शीघ्र मारनेवाली ऐसी शरीरके भीतर विद्रधी होती है, और नाभि, बस्ति यकृत, प्लीहा, पिपासास्थान, हृदय, कुक्षि, अंडसंधि ॥ ५ ॥ दोनों वृक्क गुदामें विद्रधी उपजती है For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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