________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अष्टाङ्गहृदये
तिन सब विद्रधियोंमें वातकी अधिकतासे अत्यंत तीव्र शूलवाला, धूम्र और रक्तरंगवाला और चिरकालमें उत्थान और पाकवाला और विषम तरहसे स्थित होनेवाला ॥ ६ ॥ व्यध, छेद, भ्रम, अफारा, फुरना, फैलना, तथा शब्दवाली विद्रधी होती है और पित्तकी अधिकतासे लाल, और तांबेके समान और सफेदपनेसे रहित वर्णवाली तृषा, मोह दाह, ज्वरवाली ॥ ७॥ और तत्काल उत्थान और पाकवाली विद्रधी होती है, और कफकी अधिकतासे पांडु और खाजिसे संयुक्त और उक्लेश, शीत, स्तंभ, जंभाई, अलजी, भारीपनसे संयुक्त ॥ ८॥ और चिरकालमें उत्थान और विशेष दाहवाली विद्रधी होती है और विद्रधीरोगमें पूर्वोक्त दारुण और अत्यंत दारुण आदिलक्षगोंसे बाह्य और अभ्यंतरविद्रधीके लक्षणको कहै ॥ ९॥ कृष्णफोडोंसे ब्याप्त, और धूम्रवर्णवाली तव्रिदाह, शूल, ज्वरवाली, पित्तकी विद्रधीके समान लक्षणोंवाली बाह्य और अभ्यंतरविद्रधी त्रियों के शरीरमें रक्तसे उपजती है ॥ १० ॥
शस्त्राद्यैरभिघातेनक्षते वाऽपथ्यकारिणः॥क्षतोष्मा वायुविक्षि सः सरक्तं पित्तमीरयन् ॥ ११॥ पित्तासृग्लक्षणं कुर्याद्विद्रधि भूर्युपद्रवम् ॥ तेषूपद्रवभेदश्च स्मृतोऽधिष्ठानभेदतः॥१२॥
शस्त्रआदिके अभिघातकरके क्षत हुयेमें अथवा आदिसे उपजे क्षतमें अपथ्यको करनेवाले मनुष्यके जो क्षतका अग्नि वायुसे प्रेरित किया रक्तसहित पित्तको कोपित करता हुआ ॥ ११ ॥ पित्त
और रक्तकी विद्रधीके लक्षणोंवाले और बहुतसे उपद्रवोंसे संयुक्त विद्रधीको करता है, और तिन विद्रधियोंमें अविष्ठानके विशेषसे उपद्रव भेदहैं ॥ १२ ॥
नाभ्यां हिमा भवेदस्तौ मूत्रं कृच्छ्रेण पूति च ॥श्वासो यकृति रोधस्तु प्लीयुच्छासस्य तृट् पुनः॥१३॥ गलग्रहश्च क्लोम्नि स्यात्सर्वाङ्गप्रग्रहो हृदि॥प्रमोहस्तमकः कासो हृदये घट्टनं व्य था॥१४॥ कुक्षिः पार्थान्तरांसार्तिः कक्षावाटोपजन्म च ॥स क्नोHहो वंक्षणयोवृकयोः कटिपृष्ठयोः॥१५॥ पार्श्वयोश्च व्यथा पायौ पवनस्य निरोधनम् ॥ आमपक्वविदग्धत्वं तेषां शोफव दादिशेत् ॥ १६॥
नाभिमें उपजी विद्रधी होवे तो विशेषकरके हिचकी उपजाती है और बस्तिमें विद्रधी होवे तो दुर्गंधवाला मूत्र कष्टसे उतरता है और यकृत्में विद्रधी उपजे तो श्वास होता है और प्लीहामें विद्रधी होवे तो श्वास रुकजाता है ॥ १३ ॥ और पिपासास्थानमें विद्रधी होवे तो गलग्रह रोग और तृषा उपजती है, और हृदयमें विद्रधी होवे तो शरीर जकडबंध होजाता है, और प्रमेह तमक श्वास और हृदयमें घट्टन और पीडा उपजती है कुक्षिमें विद्रधी होवे तो पशलियोंके मध्यभागमें और कंधोंमें पीडा
For Private and Personal Use Only