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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निदानस्थानं भाषाटीकासमेतम् । " समतम् । (३७३) स्तब्धभूशययुग्मस्य सास्त्रविप्लुतचक्षुषः॥ २५॥ स्तम्भयन्ती तनुं वाचं स्मृतिं संज्ञां च मुष्णती ॥ रुन्धती मार्गमन्नम्य कुर्वती मर्मघट्टनम् ॥ २६ ॥ पृष्ठतो नमनं शोषं महाहिध्मा प्रवर्त्तते ॥ महामूला महाशब्दा महावेगा महावला ॥ २७ ॥ स्तब्धरूप भ्रुकुटी और दोनो कनपटियोंवालेके और रक्त तथा चलायमान नेत्रोंवालेके ॥२५॥ देहको निश्चल करतीहुई और वाणीको स्तंभित करतीहुई स्मृतिको तथा संज्ञाको हरतीहुई और अन्नके मार्गको रोकतीहुई और हृदयआदि मर्मको चलित करतीहुई ।। २६ ॥ और शरीरके पृष्ठभागमें नमन और शोकको करतीहुई महामूलवाली और महाशब्दवाली, महावेगवाली, महाबलवाली महती हिचकी प्रवृत्त होती है ।। २७ ॥ पक्वाशयाद्वा नाभेर्वा पूर्ववद्या प्रवर्त्तते ॥ तद्रूपा सा मुहुः कुर्याज्जृम्भामङ्गप्रसारणम् ॥ २८॥ गम्भीरेणानुनादेन गंभीरा तासु साधयेत् ॥आये द्वे वर्जयेदन्त्ये सर्वलिंगां च वेगिनीम् ॥ २९ ॥ सर्वाश्च सञ्चितामस्य स्थविरस्य व्यवायिनः॥ व्याधिभिः क्षी णदेहस्य भक्तच्छेदक्षतस्य वा ॥३०॥ जो पक्काशयसे अथवा नाभिसे महती हिचकीके तरह प्रवृत्त होवे और महती हिचकीकेही समान लक्षणोंवाली होवे और बारंबार जंभाईको और अंगके प्रसारणको करै ॥ २८ ॥ ऐसे गंभीररूप घंटाआदिकी तरह शब्दकरके गंभीरा हिचकी कहाती है और तिन पांचों हिचकियोंमें अन्नजा और क्षुद्रा ये दोनों साध्य हैं और महती तथा गंभीरा ये दोनों हिचकी असाध्य हैं और सब लक्षणोंवाली यमला हिचकी भी असाध्य है ॥ २९ ॥ संचितहुये आमवालेके और वृद्धके और स्त्रीके संग नित्यप्रति मैथुन करनेवालेके तथा रोगोंकरके क्षीणदेह वालेके और भोजनकी निवृत्तिसे दुर्वलहुयेके सब प्रकारकी हिचकी असाध्य कही है ॥ ३० ॥ सर्वेऽपि रोया नाशाय न त्वेवं शीघ्रकारिणः ॥ हिमाश्वासौ यथा तौ हि मृत्युकाले कृतालयौ ॥३१॥ जैसे मृत्युकालमें देहमें वास करनेवाले हिचकी और श्वास मनुष्यको मारतेहैं तैसेही शीघ्र नहीं चिकित्साकरनेवाले मनुष्यको सबही रोग मारदेते हैं ॥ ३१ ॥ इति बेरीनिवासिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रीकृताऽष्टांगहृदयसंहिताभाषाटीकायां निदानस्थाने चतुर्थोऽध्यायः ॥ ४ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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