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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (३७४) www.kobatirth.org अष्टाङ्गहृदयेपञ्चमोऽध्यायः ॥ 10---- Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथातो राजयक्ष्मादि निदानं व्याख्यास्यामः । इसके अनंतर राजयक्ष्माआदिनिदाननामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे । अनेकरोगानुगतो बहुरोगपुरोगमः || राजयक्ष्मा क्षयः शोषो रोगराडिति च स्मृतः ॥ १ ॥ नक्षत्राणां द्विजानां च राज्ञोऽभूद्यदयं पुरा ॥ यच्च राजा च यक्ष्मा च राजयक्ष्मा ततो मतः ॥ २ ॥ देहौषधक्षयकृतेः क्षयस्तत्सम्भवाच्च सः ॥ रसादिशोषणारछोषो रोगराट् तेषु राजनात् ॥ ३ ॥ साहसं वेगसंरोधः शुक्रौजः स्नेहसंक्षयः ॥ अन्नपानविधित्यागश्चत्वारस्तस्य हेतवः ॥ ४ ॥ है ज्वर अतिसार आदि अनेक रोगोंकरके परिवृत और गुल्म अतिसार आदि रोगो में प्रधान और रोगोंका राजा राजयक्ष्मा रोग कहा है और क्षय, शोष, रोगराट् ये राजयक्ष्मा के पर्यायशब्द हैं ॥ १ ॥ पहिले अश्विनी आदि नक्षत्रोंके राजा चंद्रमा के यह रोग हुआथा तिसवास्ते रोगोंका राजा और अनेक रोगोंकरके परिवृतरूप यक्ष्मा यह दोनों मिलके राजयक्ष्मा कहाते हैं ॥ २ ॥ देह और औषधीके क्षय करनेसे क्षय कहाजाता है, अथवा क्षय है जन्म जिसका इससे क्षय कहा ता है और आदि धातुओं को शोषनेसे यह शोष भी कहाता है और बहुत से रोगों में प्रकाशित रूप होनेसे यह रोगराट् कहाता ॥ ३ ॥ शरीर और वाणीकर के साहस और अधोवात, विष्ठा मूत्र, आदिको रोकना और वीर्य, पराक्रम, स्नेहका विनाश और शास्त्र के अनुसार अन्नपानक विधिका त्याग ये चारों राजयक्ष्मा रोगके कारण हैं ॥ ४ ॥ तैरुदीर्णोऽनिलः पित्तं कफं चोदीर्य सर्वतः ॥ शरीरसन्धीनाविइय ताः शिराश्च प्रपीडयन् ॥ ५ ॥ मुखानि स्रोतसा रुद्धा तथैवातिविवृत्य च ॥ सर्पन्नूर्ध्वमधस्तिर्यग्यथास्वं जनयेदान् ॥ ६ ॥ रूपं भविष्यतस्तस्य प्रतिश्यायो भृशं क्षवः ॥ प्रसेको मुखमाधुर्यं सदनं वह्निदेहयाः ॥ ७ ॥ स्थाल्यमत्रान्नपानादौ शुचावप्यशुचीक्षणम् ॥ मक्षिकातृणकेशादिपातः प्रायोऽन्नपानयोः ॥ ८ ॥ हृल्लासश्छर्दिररुचिरश्नतोऽपि बलक्षयः ॥ पाण्यो रवेक्षापादास्य शोफोऽक्ष्णोरतिशुक्लता ॥ ९ ॥ बाह्वोः प्रमाण For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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