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निदानस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (३७१) मात्र सुखी होता है और कष्टसे शयन करताहुआ श्वास लेता है और बैठाहुआ स्वस्थपनेको प्राप्त होता है ॥ ८॥ और ऊंचे नेत्रोंवाले और मस्तककरके पसीनाको प्राप्त हुआ अत्यंत पीडावाला और विशेषकरके सूखे मुखवाला और बारंबार स्वासको लेताहुआ और उष्णपदार्थकी इच्छा करताहुआ कंपसे संयुक्त मनुष्य होजाता है ॥ ९ ॥ और मेघ पानी शीतल काल पूर्वका वायु, कफको बढानेवाले द्रव्यकरके वह श्वास बढता है यह तमक श्वास कहाता है यह कष्ट साध्य है
और बलवाले मनुष्यके उपजा और नवीन तमकश्वास साध्य भी होता है ॥ १० ॥ ज्वर और मूर्च्छसि संयुक्त हुआ और अत्यंत बढाहुआ तमकश्वास शीतलरूप औषध आदि आहारविहार करके शांत होता है ॥ छिन्नाच्छ्रसिति विच्छिन्नं मर्मच्छेदरुजार्दितः ॥११॥ सस्वेदमूर्छः सानाहोबस्तिदाहनिरोधवान् ॥ अधोदग्विप्लुताक्षश्च मुह्यनक्तैक लोचनः ॥ १२ ॥ शुष्कास्यः प्रलपन्दीनो नष्टच्छायो विचेतनः॥
और छिन्नश्वासमें मर्मके छेदके समान शूलसे पीडितहुआ मनुष्य टूटेहुये श्वासको लेताहै ।।११॥ . पसीना और मूर्च्छ से संयुक्त तथा अफारावाला और बस्थिस्थानमें दाह और निरोधवाला और नीचको दृष्टिवाला और एकजगह अनवस्थितहुये नेत्रोंवाला और मोहको प्राप्त होताहुआ और रक्तरूप एकनेत्रवाला ॥ १२॥ और सूखामुखवाला और प्रलाप करताहुआ और दीन और नष्ट हुई कांतिवाला ज्ञानसे रहित मनुष्य होजाता है | महता महता दीनो नादेन श्वसिति क्रथन् ॥ १३॥ उद्धूयमानः संरब्धो मतर्षभ इवानिशम् ॥ प्रणष्टज्ञानविज्ञानो विभ्रान्तनयना ननः ॥१४ ॥ वक्षः समाक्षिपन्बद्धमूत्रवर्चा विशीर्णवाक् ॥शुष्क कण्ठो मुहुर्मुह्यन्कर्णशङ्खशिरोऽतिरुक् ॥१५॥दीर्घमूर्ध्व श्वासित्यूध्र्वान्न च प्रत्याहरत्यधः ॥ श्लेष्मावृतमुखस्रोताः क्रुद्धगन्धवहार्दितः ॥ १६ ॥ ऊर्ध्वग्वीक्षते भ्रान्तमक्षिणी परितः क्षिपन् । मर्मसुच्छिद्यमानेषु परिदेवी निरुद्धवाक ॥ १७ ॥ एते सिध्येयुरव्यक्ता व्यक्ताः प्राणहरा ध्रुवम् ॥
और महान् श्वासकरके पीडित मनुष्य दीन होकर बडे बडे शब्द करके करता हुआ बडे श्वासको लेताहे ॥ १३ ॥ और उत्कंपमान, संक्षुभित, उन्मत्तहुये बैलकी तरह निरंतर श्वास लेता है और नष्टहुये ज्ञान तथा विज्ञानसे संयुक्त विभ्रांतहुये नेत्र और मुखवाला ॥ १४ ॥ और छातीको सम्यक् प्रकारसे आक्षेपको करताहुआ, मूत्र और विष्ठाकी बंधतासे संयुक्त और हौले बोलनेवाला तथा सूखे कंठवाला और बारंबार मोहको प्राप्त होताहुआ और कान, कनपटी, शिर इन्होंमें अत्यंतशूलवाला
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