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निदानस्थान भाषाटीकासमेतम् । (३६९) प्रसन्नरूप मुख रहता है और शोभावाले दंत तथा नेत्र होजाते हैं, पीछे इसके क्षयरूप पीनस, श्वासआदि सब प्रगट होते हैं ॥ ३५॥
इत्येष क्षयजः कासः क्षीणानां देहनाशनः ॥ याप्यो वा बलिनां तद्वत्क्षतजोऽभिनवौ तु तौ ॥ ३६॥ सिध्येतामपि सानाथ्यात्साध्या दोषैः पृथक्त्रयः॥ मिश्रा याप्या द्वयात्सर्वे जरसा स्थविरस्य च ॥३७॥ यह क्षयसे उपजी खांसी क्षीणमनुष्योंके देहको नाशती है और बलवाले मनुष्यके कष्टसाध्य कही है और ऐसेही क्षीण मनुष्योंके देहको नाशनेवाली क्षतकी खांसी है और बलवालोंको क्षतकी खांसी कष्टसाध्य कही है और नवीन उपजी क्षतकी तथा क्षयकी दोनों खांसी ॥ ३६॥ अच्छे औषध, श्रेष्ठ सेवक, श्रेष्ठ वैद्य, अत्यंत भक्त रोगी इन चारपैरोंवाली संपत्तिकरके साध्य होतीहै, अन्यथा नहीं, और वात, पित्त, कफ इन्होंसे जो अलग अलग तीन खांसी कही हैं वे साध्य केही हैं और दो दोषोंसे मिली हुई खांसी तथा बुढापाकरके वृद्ध मनुष्यके उपजी खांसी कष्टसाध्य कही है ॥ ३७॥
कासाच्छासक्षयच्छदिस्वरसादादयो गदाः॥
भवन्त्युपेक्षया यस्मात्तस्मात्तं त्वरया जयेत् ॥ ३८॥ खांसीकी नहीं चिकित्सा करनेकरके श्वास, क्षय, छर्दि, स्वरकी शिथिलता आदि रोग उपजते हैं तिस कारणसे खांसीको शीघ्रतासे वैद्य जीते ॥ ३८ ॥ इति बेरीनिवासिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहिता-भाषाटीकायां
निदानस्थाने तृतीयोऽध्यायः ॥ ३॥
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चतुर्थोऽध्यायः।
-vcmane Commonखांसीकी उपेक्षाकरनेसे श्वास होताहै इसकारण इसके अनन्तर श्वासनिदान कहते हैं ।
अथातःश्वासहिध्मानिदानं व्याख्यास्यामः। इसके अनंतर श्वास और हिचकी निदाननामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे। कासवृद्धया भवेच्छासः पूर्वैर्वा दोषकोपनैः ॥ आमातिसारवमथुविषपाण्डुज्वरैरपि ॥१॥ रजोधूमानिलैमर्मघातादतिहिमाम्बुना ॥क्षुद्रकस्तमकश्छिन्नो महानूर्द्धश्च पञ्चमः॥२॥
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