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(३६८)
अष्टाङ्गहृदयेयुद्धाद्यैः साहसैस्तैस्तैः सेवितैरयथाबलम् ॥ २७॥ उरस्यन्तः क्षते वायुः पित्तेनानुगतो बली ॥ कुपितः कुरुते कासं कर्फतेन सशोणितम् ॥२८॥ पित्तं श्यामं च शुष्कं च प्रथितं कथि
तं बहु ॥ठीवेत्कण्ठेन रुजता विभिन्नेनेव चोरसा ॥ २९ ॥ · सूचीभिारव तीक्ष्णाभिस्तुद्यमानेन शूलिना॥पर्वभेदज्वरश्वा. सतृष्णावस्वर्यकम्पवान् ॥ ३०॥ पारावत इवाकूजन्पार्श्वशू
ली ततोऽस्य च ॥ क्रमाद्वीर्यं रुचिः पक्तिर्बलं वर्णश्च हीयते . युद्धआदि तिसतिस साहस अर्थात् धनुषआदिके बैंचनेको बलके अयोग्य सेवनेकरके ॥ २७ ॥ छातीके भीतर उपजे क्षतमें पित्तकी सहायतावाला बलवान् वायु कुपित होके खांसीको करता है, तिसकरके रक्तसे सहित ॥ २८ ॥ पीला, श्याम, सूखा गांठोंवाला पिडितरूप बहुतसे कफको थूकता है और शूलवाले कंठकरके और विदीर्णहुईकी तरह छातीकरके ।। २९ ॥ और तीक्ष्णसूइयोंकरके तुद्यमान और शूलसे संयुक्त छाती करके संयुक्त और संधियोंका भेद, ज्वर, श्वास, तृषा स्वरभेद, कंपयुक्त ॥३०॥ और कबूतरकी तरह अव्यक्तशब्दको करताहुआ और पशलीमें शूलवाला मनुष्य होजाता है, है पीछे इस मनुष्यके क्रमसे वीर्य, रुचि, पकना, बल, वर्ण ये नष्ट होजाते है ॥ ३१ ॥ और क्षीणहुये इस मनुष्यसे रक्तसहित मूत्र आता है पृष्ठभाग और कटिमें जकडबंधता होजाती है ये लक्षण क्षतकी खांसीके हैं ॥
॥ ३१ ॥ क्षीणस्य सासृग्मूत्रत्वं स्याच्च पृष्ठकटीग्रहः ॥ वायुप्रधानाः कुपिता धातवो राजयक्ष्मिणः ॥ ३२ ॥ कुर्वन्ति यक्ष्मायतनैः कासंष्टीवेत्कर्फ ततः॥ पूतिपूयोपमं पतिं विस्त्रं हरितलोहितम् ॥ ३३॥ लुञ्चेते इव पार्वे च हृदयं पततीव च ॥ अकस्मादुष्णशतिच्छा बह्वाशित्वं बलक्षयः॥३४॥लिग्धप्रसन्नवक्रत्वं श्रीमदशननेत्रता ॥ ततोऽस्य क्षयरूपाणि सर्वाण्याविर्भवन्ति च ॥३५॥
और राजयक्ष्मवाले मनुष्यके वायुकी प्रधानतावाले और यक्ष्मनिदानमें कहेहुये साहसआदि निदानोंकरके कुपितहुये ॥ ३२ ॥ वातआदि दोष खांसीको करते हैं, तिससे दुर्गधित रादके समान पीला और कच्ची गंधवाला हरा रक्त कफ मनुष्य थूकता है ।। ३३ ॥ और स्थानसे भ्रष्टहुयेकी तरह पशलियां होजाती हैं और पतितहुयेकी तरह हृदय होजाता है और आपहीआप गरम और शीतलमें इच्छा उपजती है और बहुतसा भोजन करता है बलका क्षय होता है ।। ३४ ॥ चिकना
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