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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निदानस्थान भाषाटीकासमेतम् । (३६७) पांचप्रकारकी खांसी बलवाली कही है तिन खांसियोंके होनेमें पूर्वरूपको कहते हैं कण्ठमें खाज और अरुची ॥ १८ ॥ और शूककरके पूरणकी तरह कण्ठका होजाना होताहै तिन खांसियोंमें नीचेको विशेषकरके हतहुआ वायु ऊपरको प्रवृत्तहो पाछे क्रमकरके हृदयमें प्राप्तहो तिस छातीमें और कण्ठमें संसक्त होताहुआ ॥ १९ ॥ शिरके स्रोतोंको पूरितकर पीछे अंगोंको फेंकतेहुएकी तरह और नेत्रोंको शरीरसे बाहिर प्रेरित करतेहुएकी तरह और पृष्ठभाग छाती पशली इन्होंको पीडित करताहुआ वह वायु॥२०॥फूटेहुये कांसीके पात्रके समान शब्दवाला होके मुखके द्वारा प्रवृत्तहोताहै।। हेतुभेदात्प्रतीघातभेदो वायोः सरंहसः॥ २१ ॥ यद्रुजाशब्दवैषम्यं कासानां जायते ततः॥ और निदानके भेदसे वेगवाले वायुका प्रतिघात भेद कहाहै ॥ २१ ॥ जिसकरके खासियोंमैं शूल और शब्दकी विषमता उपजती है । कुपितो वातलैर्वातः शुष्कोरःकण्ठवक्रताम् ॥ २२ ॥ हृत्पाश्वोरःशिरःशूलं मोहक्षोभस्वरक्षयान् ॥ करोति शुष्कं कासं च महावेगरुजास्वनम् ॥ २३॥सोऽङ्गहर्षी कर्फ शुष्कं कृच्छ्रान्मुक्त्वाऽल्पता ब्रजेत् ॥ और वातलद्रव्योंकरके कुपितहुआ वात छाती, कण्ठ, मुख इन्होंका सूखापना ॥ २२ ॥ और हृदय, पशली, छाती, शिर इन्होंमें शूल वा मोह, क्षोभ, स्वरक्षय, महावेगवाला शूल तथा शब्दसे संयुक्त सूखीखांसीको करता है ।। २३ ॥ और अंगको हर्षित करताहुआ वहीं वायु सूखहुये कफको कष्टसे छुटा अल्पताको प्राप्त होता है, ये वातकी खांसीके लक्षण हैं ॥ पित्तात्पीताक्षिकफता तिक्तास्यत्वं ज्वरो भ्रमः॥ २४॥ पित्त सृग्वमनं तृष्णा वैस्वयं धूमको मदः॥प्रततं कासवेगेन ज्योतिषामिव दर्शनम् ॥ २५॥ और पित्तसे नेत्र और कफका पीलापन और मुखका तिक्तपना ज्वर तथा भ्रम ॥ २४ ॥ पित्त और रक्तका वमन, तृषा, स्वरका बिगडजाना, धूमा, मद निरन्तर कासके वेगकरके तारागणोंकी तरह दर्शन ये सब पित्तकी खांसीके लक्षण हैं ॥ २१ ॥ कफादुरोऽल्परुग्मूर्द्धहृदयं स्तिमितं गुरु॥ कण्ठोपलेपःसदनं पीनसच्छर्घरोचकाः ॥२६॥ रोमहर्षो घनस्निग्धश्वेतश्लेष्मप्रवर्त्तनम् ॥ और कफकी खांसीसे छातीमें अल्पशूल और शिर तथा हृदयमें गीलापन और भारीपन और कंठमें उपलेप और शरीरकी शिथिलता और पीनस, खांसी, छर्दी, अरोचक ॥ २६ ॥ गेमहर्ष, कररा, चिकना, श्वतता कफकी प्रवृत्ति यह उपजते हैं । For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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