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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३५०) अष्टाङ्गहृदयेनिदानं पूर्वरूपाणि रूपाण्युपशयस्तथा ॥२॥ सम्प्राप्तिश्चेति विज्ञानं रोगाणां पञ्चधा स्मृतम् ॥ और निदान पूर्वरूप, रूप, उपशय ( देहके आरोग्य करनेका उपयोग ) ॥ २ ॥ संप्राप्ति ऐसे रोगोंका विज्ञान पांच प्रकारका कहा है ।। निमित्तहेत्वायतनप्रत्ययोत्थानकारणैः॥३॥ निदानमाहुःपर्यायैः प्राग्रूपं येन लक्ष्यते ॥ उत्पित्सुरामयो दोषविशेषेणानधिष्ठितः॥४॥लिङ्गमव्यक्तमल्पत्त्वाद्वयाधीनां तद्यथायथम् ॥ निमित्त, हेतु आयतन, प्रत्यय उत्थान, कारण ॥ ३॥ निदान ये सब निदानके पर्यय हैं और जिस अरुचीआदि करके दोषविशेषसे अनासादित ज्वर आदि रोग लक्षित होवे तिसको पूर्वरूप कहते हैं ।। ४ ।। ज्वर आदि व्याधियोंका यथायोग्य चिह्न प्रकट नहीं होता । तदेव व्यक्ततां यातं रूपमित्यभिधीयते ॥ ५ ॥ संस्थान व्यञ्जनं लिङ्गं लक्षणं चिह्नमाकृतिः ॥ हेतुव्याधिविपर्यस्त विपर्यस्तार्थकारिणाम॥६॥ औषधान्नविहाराणामुपयोगं सुखावहम् ॥ विद्यादुपशयं व्याधेः स हि सात्म्यमिति स्मृतः ॥ ॥७॥ विपरीतोऽनुपशयो व्याध्यसात्म्याभिसंज्ञितः॥ क्योंकि व्याधिके अल्पपनेसे फिर वही पूर्वरूप प्रकटपनको प्राप्तहुआ रूपनामसे विख्यात होता हैं ॥५॥ संस्थान, व्यंजन, लिंग, लक्षण, चिह्न, आकृति ये सब रूपके तथा पूर्वरूपके पर्याय हैं, और हेतुके विपरीत और व्याधिके विपरीत और हेतुव्याधिके विपरीत और हेतुव्याधिके विपरीत अर्थ करनेवाली ।। ६ ।। ऐसे औषध अन्न त्रीडा इन्होंका उपयोग जो सुखका देनेवाला हो उसे व्याधिका उपशय कहो और इसीको सात्म्य कहते हैं हेतुविपरीत औषध जैसे शीतकफज्वरमें संठआदि गरम औषध और हेतुधिपरीत अन्न जैसे श्रमसे और वातसे उपजे ज्वरमें मांसके रससे संयुक्त चावल और हेतुविपरीत क्रीडा जैसे दिनके शयनले उत्थितहये कमें रात्रिका जागना और व्याधिविपरीत औषध जैसे अतिसारमें पाठा आदि स्तम्भन और व्याधि विपरीत अन्न जैसे अतिसारमें स्तंभनरूप मसूर आदि और व्याधि विपरीत क्रीडा जैसे उदावर्त रोगमें अत्यंत प्रवाहन करना और हेतुव्याधिविपरीत औषध जैसे वातके शोजेमें दशमूल वातको और सब तरहके शोजोंको हरता है और हेतुव्याधिविपरीत अन्न जैसे बातकफसे उपजी संग्रहणीमें तक और हेतुव्याधिविपरीत क्रीडा जैसे स्निग्धरूप दिनके शयनसे उपर्जा कफकी तंद्रामें रूखा द्रव्य और हेतुविपरीतार्थकारी औषध जैसे पित्तकी प्रधानतावाले और पच्यमान ऐसे For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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