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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३३४) अष्टाङ्गहृदयेज्वरांतिसारौ शोफान्ते श्वयथुर्वातयोः क्षये ॥ दुर्बलस्य विशेषेण जायन्तेऽन्ताय देहिनः॥९४॥श्वयथुर्यस्यपादस्थः परित्रस्ते च पिण्डिके ॥सीदतः सक्थिनी चैव तं भिषक्परिवर्जयेत् ॥ ९५॥ आननं हस्तपादं च विशेषाद्यस्य शुष्यतः॥ शूयते वा विना देहात्समासाद्याति पञ्चताम् ॥ ९६ ॥ विसर्पः कासवैवर्ण्यज्वरमूर्छाङ्गभङ्गवान्॥भ्रमास्यशोषहृल्लासदेहसादातिसारवान् ॥ ९७ ॥ कुष्ठं विशीर्यमाणाझं रक्तनेत्रं हतस्वरम् ॥ मन्दाग्निं जन्तुभिर्जुष्टं हन्ति तृष्णातिसारिणम्॥२८॥ वायुः सुप्तत्वचं भग्नं कफशोफरुजातुरम्॥ वातास्रमोहमूर्छायमदस्वप्नज्वरान्वितम् ॥ ९९ ॥शिरोग्रहारुचिश्वाससङ्कोचस्फोटकोथवत्॥शिरारोगारुचिश्वासमोहविड्भेदतृभ्रमैः॥१०॥ शोजाके अंतमें ज्वर और अतिसार उपजै अथवा ज्वर और अतिसारके अंतमें शोजा उपजै, सो विशेषताकरके दुर्बल मनुष्यकी निश्चयकरके मृत्यु होती है ॥ ९४ ॥ जिस मनुष्यके पैरोंमें स्थित शोजा होवे तब दोनों पैरोंकी पिंडी शिथिल होजावें और दोनों पैरोंकी सक्थि उटै नहीं ऐसे रोगीमनुष्यको वैद्य त्याग देवै ॥ ९५ ॥ जिस मनुप्यके विशेषतासे मुख, हाथ, पैर ये रूबै अथवा शरीरको वर्जिके मुख, हाथ, पैर इन्होंमें शोजा उपजै वह मनुष्य एक महीनेमें मरता है ॥९ ॥ खांसी, वर्गका वदलजाना, ज्वर, मूर्छा, अंगभंग, भ्रम, मुखशोष, थुकथुकी, देहकी शिथिलता, अतिसार इन उपद्रवोंसे संयुक्त विसर्परोग मनुष्यको मारता है ॥ ९७ ॥ विखरतेहुये अंगोंवाला और लाल नेत्रोंवाला और हतहुये स्वरवाला और मंदअग्निवाला और कीडोंसे संयुक्त और तृषा तथा अतिसारवाले मनुष्यको कुष्ठरोग मारता है॥९८ ॥ सोतीहुई खालवाला, टूटेहुये अंगवाला कफ शोजा, शूल इन्होंसे पीडित और वातरक्त, मोह, मूी , मद, नींद, ज्वर इन्होंसे संयुक्त ॥ ९९॥ शिरोग्रह, अरुचि, श्वास, संकोच, स्फोट, कोथ, शिररोग, अरुचि, श्वास, मोह, विड्भेद, तृषा, नम इन्होंसे संयुक्त मनुष्यको वायु मारता है ॥ १० ॥ नन्ति सर्वामयाः क्षीणस्वरधातुबलानलम् ॥ स्वर, धातु, बल, अग्नि इन्होंकरके क्षीणमनुष्यको सव रोग मारते हैं । वातव्याधिरपस्मारी कुष्ठी रक्तयुदरी क्षयी ॥१०१॥ गल्मी मेही च तान्क्षीणान्विकारेऽल्पेऽपि वर्जयेत् ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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