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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शारीरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । कच्चे अन्नको निकासताहुआ वही पूर्वोक्त अतिसार, तृषा, श्वास, ज्वर, छर्दि, दाह, अफारा, प्रवाहिका, इन उपद्रवोंसे संयुक्त होके रोगीको मारता है ।।८४॥ सूजेपोतोंवाला और मूत्रकी बंधतासे, संयुक्त और शूलसे पीडित रोगीको पथरीरोग नारता है और तृषा, दाह, फुनसी, मांस कोथ,अतिसार इन उपद्रवोंसे युक्त मनुष्यको प्रमेहरोग मारता है ।। ८५ ॥ मर्म, हृदय, पृष्ठभाग, चूंची, गुदा, शिर, इन्होंमें प्राप्त हुई और संधि, पैर, हाथ इन्होंमें प्राप्त हुई फुनसियां मंदउत्साहवाले प्रमेहरोगीको मारते हैं ॥८६॥ और मांसका संकोच दाह, तृषा, मद, ज्वर, विसर्परोग मर्मका रुकना, हिचकी, श्वास, भ्रम, ग्लानि, इन्होंकरके युक्त मनुष्यको फुनसियां मारती हैं ॥ ८७ ॥ गुल्मः पृथुपरीणाहो घनः कूर्म इवोन्नतः ॥ शिरानद्धो ज्वरच्छर्दिहिध्माध्मानरुजान्वितः॥ ८८ ॥ कासपीनसहृल्लासश्वासातीसारशोफवान्॥विण्मूत्रसंग्रहश्वासशोफहिध्माज्वरभ्रमैः ॥८९ ॥ मूर्छाच्छतिसारैश्च जठरं हन्ति दुर्बलम् ॥ शूनाक्षं कुटिलोपस्थमुपक्लिन्नतनुत्वचम् ॥९० ॥ विरेचनहतानाहमानाह्यन्तं पुनः पुनः।। पाण्डुरोगः श्वयथुमान् पीताक्षिनखदर्शनम् ॥ ९१ ॥ तन्द्रादाहरुचिच्छर्दिमूर्छाध्मानातिसारवान् ॥ अनेकोपद्रवयुतः पादाभ्यां प्रसृतो नरम् ॥ ९२॥नारी शोफो मुखाद्धन्ति कुक्षिगुह्यादुभावपि ॥ राजीचितःस्रवंश्छर्दिज्वर श्वासातिसारिणम् ॥ ९३ ॥ पृथुरूप मुटाईवाला और करडा और कछुआकी तरह ऊंचा और नाडियांकरके बंधाहुआ और ज्वर, छर्दि, हिचकी, अफारा, शूलसे संयुक्त ॥ ८८ ॥ और खांसी, पीनस, थुकथुकी, अति, सार, शोजासे संयुक्त गुल्म मनुष्यको मारता है और विष्ठा तथा मूत्रकी बंधता और श्वास, शोजा, हिचकी, ज्वर. भ्रम ॥ ८९ ॥ मूर्छा, छर्दि, अतिसार इन उपद्रवोंसे युक्त हुआ पेटरोग दुर्बल सूजेहुये नेत्रोंवाला और कुटिलरूपलिंग और अंडकोशआदिवाला और किन्नरूप शरीर और त्वचावाला ॥९० ॥ और विरेचनकरके नष्टहुये अफारावाला और वारंवार अफाराके योग्य मनुष्यको मारदेता है और शोजासे संयुक्त पांडुरोग और नेत्र, नख, पीले देखनेसे संयुक्त हुये मनुष्यको मारता है ॥ ९१ ॥ तंद्रा, दाह अरुचि, छर्दि, मूर्छा, अफारा, अतिसारवाला और अनेक उपद्रवोंसे संयुक्त और पैरोंसे फैलाहुवा शोजा पुरुषको मारता है ॥ ९२॥ ऐसाही शोजा जो मुखसे फैलाहुवा हो तो नारीको मारता है और कुक्षि तथा गुदासे फैलाहुआ शोजा नारी तथा पुरुष दोनोंको मारता है परंतु पंक्तियोंसे व्याप्त और दोषोंके अनुसार झिरताहुआ शोजा छर्दि, ज्वर श्वास, अतिसार इनरोगोंवाले मनुष्यको मारता है ॥ ९३ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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