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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३३२) अष्टाङ्गहृदये॥७९॥ हृत्पाश्वांगरुजाच्छर्दिपायुपाकज्वरातुरम् ॥ अतीसारो यकृत्पिण्डमांसधावनमेचकैः ॥ ८० ॥ तुल्यस्तैलघृतक्षीरदधिमजवसासवैः ॥ मस्तुलुंगमषीपूयवेसवाराम्बुमाक्षिकैः॥ ८१॥ पशली शूल, अफारा, रक्तकी छर्दि, कन्धाका उपताप इन उपद्रवोंवाले मनुष्यको राजयक्ष्मा मारती है और बडेवेगसे संयुक्त मूत्र तथा विष्टाके समान गंधवाली और जलमें तलकी बिंदु स्थित होसकै ऐसी चंद्रिकासे संयुक्त ॥ ७७ ।। और रक्तसहित विष्टा, राद, शूल, खांसी, श्वास इन उपद्रवोंसे संयुक्त और दीर्घकालसे उपजीहुई छर्दि मनुष्यको मारती है. अन्यरोगसे कर्षित हुआ और बाहिरको निकसी जीभवाला और चेतसे रहित मनुष्यको तृषारोग मारता है ॥ ७८ ॥ अत्यन्त शीतकरके पीडित और क्षीण और तेलकी कांतिके समान मुखवाले रोगीको मदात्ययरोग मारता है और हाथ, पैर, नाभी, गुदा, अंडकोश, मुखपै शोआवाला ॥ ७९ ॥ और हृदय, पशलीअंग इन्होंमें शूल और छर्दि और गुदाका पाक और ज्वरसे पीडित रोगीको बवासीर रोग मारते हैं और यकृत्का पिंड और मांसका धोवन और नलिावर्णके तुल्य ।।८०॥ और तेल,घृत,दूध, दही, मजा, वसा, आसव, माथाका स्नेह, श्याही, राद, वेसवारका पानी, शहद इन्होंके तुल्य अतीसार मनुष्यको मारता है ॥ ८१ ॥ अतिरक्तासितस्निग्धपूत्यच्छघनवेदनः ॥ कव॒रः प्रस्रवन् धातूनिष्पुरीषोऽथवाऽतिविट् ॥ ८२ ॥ तन्तुमान् मक्षिकाक्रान्तो राजीमांश्चन्द्रकैर्युतः ॥ शीर्णपायुवलिं मुक्तनालं पर्वास्थिशूलिनम् ॥ ८३ ॥ स्त्रस्तपायुं बलक्षीणमन्नमेवोप वेशयेत् ॥ सतृट्श्वासज्वरच्छर्दिदाहानाहप्रवाहिकः ॥ ८४ ॥ अश्मरी शनवृषणं बद्धमत्रं रुजार्दितम् ॥ मेहस्तृड्दाहपिटिकामांसकोथातिसारिणम् ॥ ८५ ॥ पिटिकामर्महत्पृष्टस्तनांसगुदमूर्द्धगाः ॥ पर्वपादकरस्था वा मदोत्साहं प्रमेहिणम् ॥ ८६ ॥ सर्वश्च मांससङ्कोचदाहतृष्णामदज्वरैः॥ विसर्पमर्मसंरोधहिमाश्वासभ्रमलमैः ॥ ८७॥ अत्यन्त रक्त, अत्यन्तकृष्ण,अत्यन्त चिकना, अत्यन्त दुर्गधवाला,अत्यन्तपतला, अन्यन्त करडा, अत्यन्त पीडावाला और अनेकवर्णवाला और धातुओंको झिराताहुआ और विष्टासे रहित अथवा अत्यन्त विष्टावाला ऐसा अतीसार मनुष्यको मारता है।। ८२॥और तांताबाला और माखियोंसे आक्रांत और पंक्तियोंवाला और चंद्रकोंसे युक्त ऐसा अतिसार विदारित हुई गुदाकी बलियोंवाल और छुटे हुये बंधनवाले और संधियोंकी हड्डीमें शूलवाले॥८॥और शिथिलगुदावाले बलकरके क्षीण और For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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