SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 380
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । शारीरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (३१७) तिन्होंमें विरुद्ध हुआ मनुष्य तत्काल जीवको त्यागता है और कपालसंबंधी पांच संधि है तिन्होंमें तिरछे और ऊपरको प्राप्त हुये पांच सीमंतनामवाले मर्म है ।। ३५ ।। तिन्होंमें विद्ध हुअ. मनुष्य भ्रम उन्माद विस्मति करके नाशको प्राप्त होता है और मस्तकके भीतर और ऊपर स्थित और नाडियोंकी संधियोंका समागमरूप ॥ २६ ॥ रोमोंसे आवर्त हुआ अधिपनामवाला मर्म है तहां चोट लगे तो मनुष्य तत्काल मरजाता है ।। विषम स्पंदनं यत्र पीडित रुक् च मर्म तत् ॥ ३७॥ मांसा. स्थिस्नायुधमनीशिरासन्धिसमागमः ॥ स्यान्ममेति च तेनाऽ त्र सुतरां जीवितं स्थितम् ॥ ३८ ॥ वाहुल्येन तु निर्देशः षोडैवं मर्मकल्पना ॥ प्राणायतनसामान्यादैक्यं वा मर्मणां मतम् ॥ ३९ ॥ मांसजानि दशेन्द्राख्यतलहृत्स्तनरोहिताः॥ शंको कटीकतरुणे नितम्बावंसयोः फले ॥४०॥ अस्थ्न्यष्टौ लावमर्माणि त्रयोविंशतिराणयः॥ कूर्चकूर्चशिरोपांगक्षित्प्रोक्षेपांसवस्तयः॥ ४१ ॥ और जहां विषनरूप फुरना होवे और पीडित होनमें विषमरूप पीडा होवे वह मर्म कहाता है ॥ ३७ ।। मांस, हड्डी, नस धमनी, शिरा, संधि, इन्होंका समागम मम है इसहेतुकरके अच्छीतरहसे इनमोंमें जीव स्थित होरहा है ॥ ३८ ॥ जो एकसौ सात मोंकी गणनारूप निर्देश बाहुलता करके है और मोकी कल्पना सोलह हैं क्योंकि प्राणोंके स्थानरूप होनेसे अथवा मोंकी एकताही है ॥ ३९ ॥ दो इन्द्राख्यमर्म तलहनामवाले चार स्तन रोहितनामवाले चार ऐसे दश मर्म मांससे उत्पन्न होनेवाले हैं और दो शंखमर्म और दो कटिकतरुण दो नितंब दो अंसफलक ॥ ४० ॥ ऐसे आठ मर्म हड्डियों में हैं अणिनामवाले चार कूर्च चार कूर्चशिरनामवाले चार और अपांगनामवाले दो और क्षिप्रनामवाले चार उत्क्षेपनामवाले दो और अंस नामबाले दो बस्तिनामवाले एक ऐसे तेईस स्नायु मर्म कहे हैं ॥ ४१॥ . गुदोपस्तम्भविधुरशृंगाटानि नवादिशेत् ॥ मर्माणि धमनीस्थानि सप्तत्रिंशच्छिराश्रयाः ॥ ४२ ॥ बृहत्यौ मातृकानीले मन्ये कक्षाधरौ फणौ ॥ विटपे हृदयं नाभिःपार्श्वसंधी स्तनान्तरे ॥४३॥ अपालापौ स्थपन्यूय॑श्चतस्रो लोहितानि च। गुद एक अपस्तंभनामवाले दो, विधुरनामवाले दो, शृंगाटकनामवाले चार ऐसे धमनी नाडियोंमें स्थित होनेवाले नव मर्म कहे हैं और शिराओंमें आश्रित हुये सैतिस मर्म है ॥ ४२ ॥ जैसे For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy