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(३१८)
बष्टाङ्गहृदयेबृहतीनामवाले दो मातृकानामवाले आठ मन्यानामवाले दो नीलनामवाले दो कक्षाधरनामवाले दो फणनामवाले दो विटपनामवाले दो हृदयनामवाला एक उन्नाभिनामवाला एक पार्श्वसंधिनामवाले दो
और स्तनांतरमें ॥ ४३ ॥ अपालाप नामवाले दो स्थपनीनामवाला एक उर्वीनामबाले चार लोहितनामवाले चार हैं ॥
सन्धौ विंशतिरावौ मणिबन्धी कुकुन्दरौ ॥४४॥ सीमन्ताः कृपरौ गुल्फो कृकाट्यौ जानुनी पतिः॥ मांसमर्म गुदोऽन्येषा स्नात्री कक्षाधरौ तथा ॥४५॥ विटपौ विधुराख्ये च शृंगाटानि शिरासु तु ॥ अपस्तम्भावपांगौ च धमनीस्थं न तैः स्मृतम् ॥ ४६॥
और संधियोंमें बीस मर्म हैं जैसे मणिबंध दो और कुकुंदर दो ॥ ४४ ॥ सीमंत नामवाले पांच और कूपरनामवाले दो और गुल्फनामवाले दो और कृकाटिकनामवाले दो जानुनामवाले दो अधिपतिनामबाला एक है और अन्य आचार्योंके मतमें गुद मांसमर्म है और धमनी मर्म नहीं और कक्षाघरनामवाले दो मर्म स्नायुमर्म हैं और शिरा मर्म नहीं ॥ ४५ ॥ विटपनामवाले दो मर्म विधुरनामवाले दो मम येभी स्नायु मर्म हैं और शंगाटनामवाले चार मर्म शिरां मर्म हैं और धमनीमर्म नहीं और दोनों अपस्तंभ और दोनों अपांग ये चारों धमनीमर्म नहीं है किंतु स्नायुमर्म हैं ऐले अन्य ऋषियोंने कहा है ॥ ४६॥ विद्धेऽजस्त्रससृक्स्रावो मांसधावनवत्तनुः॥ पाण्डुत्वमिन्द्रियाज्ञानं मरणं चाशु मांसजे ॥ ४७ ॥ मज्जान्वितोऽच्छो विच्छिनत्रावो रुक्चास्थिमर्मणि ॥ आयामाक्षेपकस्तम्भाः स्नायुजेभ्यधिक रूजा ॥४८॥ यानस्थानासनाः शक्तिर्वैकल्यमथवान्तकः॥ रक्तं सशब्दफेनोष्णं धमनीस्थे विचेतसः ॥ ४९॥ शिरामर्मव्यधे सान्द्रमजस्रं वसृक्स्रवेत् ॥ तत्क्षयात्तृभ्रम श्वासमोहहिध्माभिरन्तकः ॥५०॥ वस्तु कैरिवाकीर्ण रूढे च कुणिखञ्जता॥ वलचेष्टाक्षयः शोपः पर्वशोफश्च सन्धिजे॥५१॥ मांसजमर्ममें वेध होजावे तो मांसको धोवनेके समान और सूक्ष्म निरंतर रक्त झिरता है और शरीरका पीलापन होजाता है और इंद्रियोंको विषयका ज्ञान नहीं रहता और शीघ्र मृत्यु होजाती है ॥ ४७ ॥ विद्धहुये अस्थिमर्ममें पतला और मज्जासे मिला हुआ और पांसमर्मके वेधकी तरह नहीं ऐसा स्वाब और पीडा होती है और विद्धहुये स्नायुके मर्ममें आयाम, आक्षेपक, स्तंभ, अत्यंत पीडा
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