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(३०८)
अष्टाङ्गहृदयेत्कणिकारान्पलाशान्दिग्दाहोल्काविद्युदर्कानलांश्च ॥॥९३॥ तनूनि पिङ्गानि चलानि चैषां तन्वल्पपक्ष्माणि हिमप्रियाणि क्रोधेन मयेन रवेश्च भासा रागं वजन्त्याशु विलोचनानि ॥९४॥ मध्यायुषो मध्यबलाः पण्डिताः क्लेशभीरवः॥ व्याघ्रक्षकपिमार्जारयज्ञानूकाश्च पैत्तिकाः ॥ ९५ ॥ धन्वंतरीके मतमें पित्तही अग्नि है अथवा अन्यमतमें अग्निसे उत्पन्न होनेवाला पित्त है, इस वास्ते तीक्ष्ण, तृषा, क्षुधावाला, गौर तथा गरम अंगवाला, तांबाके समान रक्त हाथ, पैर, मुखवाला. शूर वीर, मानी और कछुक पीलाईसे संयुक्तबालोंवाला. अल्परोमोंवाला ॥ ९० ।। फूलों की माला और चंदनआदिके लेपनसे प्रीति करनेवाला, सुंदरचेष्टावाला पवित्र,शरणागतकी रक्षा करनेवाला और विभव, साहस, बुद्धिबलसे अन्वित, भयोंमें शत्रुओंकीभी रक्षा करनेवाला ।। ९१ ॥ और पवित्रबुद्धिवाला और संधियोंके बंध तथा मांसकी शिथिलतासे संयुक्त और नारियोंको अप्रिय और वीर्य तथा कामदेवकी अल्पताले संयुक्त और बालोंका सपेदपना और तरंग और नलिंकाकी अत्यंततासे संयुक्त और मधुर, कसैला, कडुआ, शीतल अन्न भोजन करनेवाला ।। ९२ ॥ धर्मका बैरी और पसीनासे संयुक्त और दुगंधिवाला और विष्ठा, क्रोध, पान, भोजन, ईर्षाके बहुतपनेसे संयुक्त और शयनकरनेमें कर्णिकाके आकार पलाश वृक्षोंको और दिग्दाह, उल्का, बिजली, सूर्य, अग्निको देखनेवाला ।। ९३ ।। और सूक्ष्म, कुछेक पीलेपनेसे संयुक्त चलितरूप सूक्ष्म तथा अलपलकोंवाले और शीतलपनेको चाहनेवाले और क्रोध, मदिरा, सूर्यके धामसे ललाईको तत्काल प्राप्त होनेवाले नेत्रोंवाला ॥ ९४ ॥ और मध्य अर्थात् साठ वर्षतककी आयुवाला और मध्यवलवाला
और पंडित और क्लेशमें डरनेवाला और भगेरा, रीछ, बांदर, बिलाव, शूकरके स्वभावके समान स्वभावोंवाले पित्तकी प्रकृतिवाले मनुष्य होते हैं । ९५ ॥
श्लेष्मा सोमः श्लेस्मलस्तेन सौम्यो गूढस्निग्धाश्लिष्टसन्ध्यस्थिमासः ॥ क्षुत्तृड्दुःखक्लेशधमैरतप्तो बुद्ध्यायुक्तः सात्त्वि कः सत्यसन्धः ॥ ९६ ॥ प्रियङगुदूर्वाशरकाण्डशस्त्रगोरोच नापद्मसुवर्णवर्णः॥प्रलम्बबाहुः पृथुपीनवक्षा महाललाटो घननीलकेशः ॥ ९७ ।। मृद्वङ्गः समसुविभक्तचारुवा बह्वोजोरतिरसशुक्रपुत्रभृत्यः ॥ धर्मात्मा बदति न निष्ठुरं च जातु प्रच्छन्नं वहति दृढं चिरं च वैरम्॥ ९८ ॥ समद द्विरदेन्द्रतुल्ययातो जलदाम्भोधिमृदङ्गसिंहघोषः ॥ स्मृ. निमानभियोगवान् विनीतो न च बाल्येऽप्यतिरोदनो न .
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