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शारीरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । , (३०७) याकलिलोलाः॥ ८६॥ मधुराम्लपटूष्णसात्म्यकांक्षाः कृशदी
कृतयः सशब्दयाताः ॥ न दृढा न जितेन्द्रिया न चार्या न च कान्तादयिता बहुप्रजा वा ॥८७ ॥ नेत्राणि चैषां खरधूसराणि वृत्तान्यचारूणि मृतोपमानि॥ उन्मीलितानीव' भवन्ति सुप्ते शैलद्रुमांस्ते गगनं च यान्ति ॥ ८८ ॥ अधन्या मत्सरा ध्माताः स्तेनाः प्रोद्दद्धपिण्डिकाः ॥ श्वशृगालोष्ट्रध्रा
खुकाकानूकाश्च वातिकाः॥ ८९॥ स्तनपनेसे, शीत्रकारीपनेसे, बलबालापनेसे अन्नको कोषित करनेवाला होनेसे, स्वतंत्रतासे और बहुतसे रोगावाला होनेसे वायु सब दोपोंमें प्रधान है ॥८४॥ इसीवास्ते प्रायताकरके स्फुटित तथा भूलररूप बाल अंगोंवाले और शीतलताके वैरी और चलायमान धृति स्मृति, बुद्धि, चेष्टा. मित्रतः, दृष्टि, गमनकाले और बहुत असंबद्ध बोलनेवाले और दोषरूपस्वभाववाले ॥ ८९ ॥ और पित्त, बल, जीवना, नींदकी अल्पतासे संयुक्त और अवसादको प्राप्त हुई तथा बोलने में विलंब करनेवाली तथा चलितरूप तथा जर्जर अर्थात् फूटेहुये कांसीके पात्रके समान शब्द करनेवाली ऐसी बागीसे संयुक्त और नास्तिक और बहुत भोजन करनेवाले और लीलाको करनेवाले और गाना, हलना, शिकार खेलना, कलहमें मन लगानेवाले ॥ ८६ ॥ और मधुर, खट्टा, सलोना, गरमरसोंकी अभिटापा करनेवाले और दुबले शरीरबाले और लंबी आकृतीवाले, शब्दसहित गमन वाल, दृढ़तासे रहित, जितेंद्रियपनसे रहित, सजनतासे रहित, स्त्रियोंको प्रिय नहीं, अल्प संतानथाले ।। ८७ ॥ और इन्होंके तीक्ष्ण और धूसर और गोल और रक्त और मृतमनुष्यके समान उप भावले खुलेहुओंकी समान नेत्र होते हैं और शयन करनेमें पर्वत, वृक्ष, आकाशपै गमन करते हैं ।।८८१ और मंगलतासे रहित, वैरभावसे पूर्ण तथा चोरी करनेवाले, ऊंचीपीडीवाले कुत्ता, गीदड, ऊंट मूसा काकक समान स्वभाववाले मनुष्य वातकी प्रकृतिवाले होते हैं ।। ८९ ॥ पित्तंवह्निर्वह्निजं वा यदस्मात्पित्तोद्रिक्तस्तीक्ष्णतृष्णाबुभुक्षः॥ गौरोष्णाङ्गस्ताम्रहस्तांऽधिवक्रः शूरो मानी पिङ्गकेशोल्परोमा ॥९०॥ दयितमाल्यविलेपनमण्डनः सुचरितः शुचिराश्रितवत्सलः ॥ विभवसाहसवुद्धिबलान्वितो भवति भीषुगति द्विषतामपि ॥९१॥ मेधावी प्रशिथिलसन्धिबन्धमांसो नारी णामनभिमतोऽल्पशुक्रकामः॥ आवासः पलिक्तरङ्गनीलिकाना भुंक्तेऽन्नं मधुरकषायतिक्तशीतम् ॥ ९२ ॥ धर्मद्वेषी स्वेदनः पृतिगन्धिर्भर्युच्चारक्रोधपा नाशनेjः॥ सुप्तः पश्ये.
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