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. शारीरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (३०३) भौमाप्याग्नेयवायव्याः पञ्चोष्माणः सनाभसाः॥
पञ्चाहारगुणान्स्वान्स्वान्पार्थिवादीन्पचन्त्यनु ॥ ५९॥ पृथ्वी, जल, वायु अग्नि, आकाशसे उत्पन्न पांचों ऊष्मा अर्थात् पांचों अग्नि पार्थिवादि अपने अपने पांच गुणोंको पश्चात् पकाते हैं ॥ ५९ ॥
यथास्वं ते च पुष्णन्ति पक्त्वा भूतगुणान्पृथक् ॥
पार्थिवाः पार्थिवानेव शेषाः शेषांश्च देहगान् ॥६०॥ पंचमहाभूतोंसे आश्रित हुये ये गुण यथायोग्य अपने अग्निकरके अपनेही देहमें स्थित हुये महाभूतगुणोंको पृथक् पृथक् पुष्ट करते हैं, जैसे पृथ्वीसे उत्पन्न होनेवाले महाभूतगुण देहमें प्राप्त हुये पृथ्वीसे उपजे महाभूतगुणोंको पुष्ट करते हैं और शेष रहे जलआदिके महाभूतगुण शेषरूप जलआदिके महाभूतगुणोंको पुष्ट करते हैं ।। ६० ॥
किटं सारश्च तत्पक्वमन्नं सम्भवति द्विधा॥
तत्राच्छं किमन्नस्य मूत्रं विद्याद्धनं शकृत् ॥ ६१ ॥ पक्क हुआ वह अन्न भोजन किट्ट अर्थात् मैलरूप और साररूप इन भेदोंसे दो प्रकारका उपजता है तिन्होंमें अन्नका स्वच्छरूप मैल मूत्र जानो और घनरूप मैल विष्ठा है ॥ ६१ ॥
सारस्तु सप्तभिर्भूयो यथास्वं पच्यतेऽग्निभिः॥ रसाद्रक्तं ततो मांसं मांसान्मेदस्ततोऽस्थि च ॥२॥ और वह सार सात प्रकारकी अग्नियोंकरके फिर साबवार पकाया जाता है तब पहिले रस होता है और रससे रक्त, रक्तसे मांस मांससे मेद मेदसे हड्डियां ।। ६२॥
अस्थ्नो मज्जा ततः शुक्रं शुक्राद्गर्भः प्रजायते ॥
कफः पित्तं मलः खेषु प्रस्वेदो नखरोम च ॥ ६३॥ .. हड्डियोंसे मज्जा मज्जासे वीर्य वीर्यसे गर्भ उपजते हैं और कफ, पित्त, छिद्रोंमें पसीना, नख, रोम, ॥६३ ॥
स्नेहोऽक्षित्वग्विशामोजोधातूनां क्रमशो मलाः ॥
रसादिकिट्टो धातूनां पाकादेवं द्विधार्च्छतः ॥६४ ॥ अक्षि, त्वचा, का मैल इन्होंका स्नेह, बल ये सब धातुओंके क्रमसे मल हैं और रस आदि धातुओंका इसी प्रकारकरके पाकसे साररूप मैल दो प्रकारका है ॥ ६४ ॥
परस्परोपसंस्तम्भाद्धातुस्नेहपरम्परा ॥ केचिदाहुरहोरात्रात्षडहादपरे परे॥६५॥
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