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विषय.
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स्थान विशेषमेंबंध विशेष की योजना .... २५४
दुष्टमणचिकित्सा
२५५
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व्रणको बंधादि उपचार व्रण पडे हुयेमाक्षका कृमिनकी
२५६
चिकित्सा aणचिकित्सा में निरंतरपथ्य सेवना योग्य २५७
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वैद्यशिक्षा ८०
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अक्षाराग्निकर्मविधिअध्याय
क्षारको श्रेष्ठत्व क्षार श्रेष्ठताकारण क्षारकोपानकरने योग्य रोग विशेष
क्षारके लेपकरने योग्य रोगविशेष पित्तादिकमें क्षारका उपयोगवर्ण्य
क्षारनिकासनेके प्रकार क्षारके उपयोगका विधि क्षारसेवन के उपरांत भोजन नियम
पुनः क्षारके सेवनका प्रकार
अतिदग्धतासे उपद्रव
गुदपद्रव नासिकोपद्रव
कर्णोपद्रव
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अथत्रिंशोऽध्यायः ३०
अत्यर्थदग्धके लक्षण दुग्ध उपचार
३
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तहां उपचारकल्पना
अकर्मक श्रेष्ठ
अग्निकर्मके उपयोगके योग्यरोग
अग्निकर्मकी रीति अरु विधि सम्यग्दग्धलक्षण दुर्दग्ध अरु
अतिदग्धके लक्षण
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अनुक्रमणिका । विषय.
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सम्यग्दग्ध के उपचार
अतिदग्धके उपचार
अत्यर्थदग्धके उपचार
सूत्रस्थानका उपसंहार ५३ इति सूत्रस्थानम् ? अथशारीरस्थानम् ॥ २ ॥
अथ प्रथमोऽध्यायः १
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अथ गर्भविक्रांतिशारीर अध्याय
गर्भके उत्पत्तिका आदिकारण तां दृष्टांत
गर्भकी कुक्षिमें वृद्धिहोनेका प्रकार....
स्त्री, पुरुष, नपुसंक इनभेदोंका.
कारण
एकबार में अनेक बालक होनेका
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घृतप्राशन ग्रंथीरूपवीर्य में पलाशभस्म मिश्र
(३३)
घृतप्राशन राधरूपवीर्य फालसा आदिमिश्र
घृतप्राशन
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कारण
मलों के विकारसे वियोनि अरु विकृ
ताकार गर्भकी उत्पत्ति
स्त्रियोंकी रजस्वलापने का नियम
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वीर्यवान् पुत्र होने का कारण दुष्टवीर्य अरु रक्तको गर्भ उपजने में
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असामर्थ्य वीर्यकुणपादि आकार होनेका
कारण वीर्यका साध्यासाध्यविचार वीर्यशुद्धयर्थ धवफूलआदिका
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