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(२९०)
- अष्टाङ्गहृदयेवातनाशक रास्नाआदि औषधोंमें सिद्ध किये दूधको दशदिनोंतक भोजन करे पीछे फिर दश दिनोंतक मांसके रसका भोजन हित है पीछे हलके पथ्य और अल्प भोजनको करनेवाली ॥ ४५ ॥
स्वेदाभ्यंगपरा स्नेहान्बलातैलादिकान्भजेत् ॥
ऊर्ध्वं चतुभ्यो मासेभ्यः सा क्रमेण सुखानि च ॥ ४६ ॥ स्वेद और अभ्यंगको सेवनेवाली वह स्त्री खरेहटीआदिके स्नेहोंको सेवै पीछे चार महीनोंसे उपरांत क्रमकरके सुखको देनेवाले अन्न पान क्रीडाआदिको सेवै ॥ ४६॥
बलामूलकषायस्य भागाः षट् पयसस्तथा ॥
यवकोलकुलत्थानां दशमूलस्य चैकतः॥४७॥ खरेहटीकी जडका क्वाथ छ:भाग, दूध छ: भाग, जव, बेर, कुलथी दशमूल ॥ ४७ ॥
निःक्वाथभागो भागश्च तैलस्य च चतुर्दश ॥
द्विमेदादारुमञ्जिष्ठापाकोलीद्वयचन्दनैः॥४८॥ इन्होंके काथ एक भाग और तेल एक भाग ऐसे चौदह भाग हुये पीछे इन्होंमें मेदा, महामेदा, देवदार, मजीठ, काकोली, क्षरिकाकोली, चंदन ॥ ४८ ॥
सारिवाकुष्ठतगरजीवकर्षभसैन्धवैः ॥
कालानुसार्याशैलेयवचागुरुपुनर्नवैः॥ ४९ ॥ अनंतमूल, कूठ, तगर, जीवक, ऋषभक, सेंधानमक, उत्पल, शारिवा, शिलारस, वच, अगर, साठी ॥ ४९ ॥
अश्वगन्धावरीक्षीरशुक्लायष्टीवरारसैः॥
शताबाशूर्पपण्येलात्वपत्रैः श्लक्ष्णकल्कितैः॥ ५० ॥ आसगंध, शतावरी, क्षीरविदारी, मुलहटी, त्रिफला, बोल, महाशतावरी, रानमूंग, इलायची, दालचीनी, तेजपात इन्होंको महीन पीस कल्क बना पूर्वोक्तमें ॥ ५० ॥
पक्कं मृद्वग्निना तैलं सर्ववातविकारजित् ॥
सूतिकाबालमर्मास्थिक्षतक्षीणेषु पूजितम् ॥ ५१ ॥ मिलाय कोमल अग्निसे पकावै यह तेल सब प्रकारके वातके विकारोंको जीतता है और सूतिका, बालक मर्म, हड्डीकरके क्षत, क्षीण, रोगियोंको पूजित है ॥ ५१ ॥
ज्वरगुल्मग्रहोन्मादमूत्राघातान्त्रवृद्धिजित् ॥
धन्वन्तरेरभिमतं योनिरोगक्षयापहम् ॥५२॥ और ज्वर, गुल्म, ग्रहदोष, उन्माद, मूत्राघात, अंत्रवृद्धि, योनिरोग, क्षयरोग, इन्होंको नाशता है यह धन्वंतरीजीका मानाहुभा है ॥ १२॥
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