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शारीरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (२९१) बस्तिद्वारे विपन्नायाः कुक्षिः प्रस्पन्दते यदि ॥
जन्मकाले ततः शीघ्रं पाटयित्वोद्धरेच्छिशम् ॥ ५३॥ मर्गहुई गर्भवाली स्त्रीके बस्तिद्वारके समीपमें जो कुक्षि अत्यंत फुरती होवे और वह समय गर्भकी उत्पत्तिका होवै तो चतुर वैद्य तत्काल शस्त्रसे पेटको काट बालकको जीताहुआ निकासै५३॥ .
मधुकं शाकबीजं च पयस्या सुरदारू च ॥
अश्मन्तकः कृष्णतिलास्ताम्रवल्ली शतावरी ॥५४॥ मुलहटी, वरच्छदशाकका बीज, दूध, देवदार इन्होंको और आपटा, काले तिल, मजीठ, शतावरी इन्होंको ॥ ५४ ॥
वृक्षादनी पयस्या च लता चोत्पलसारिवा॥
अनन्ता सारिवा रास्ना पद्मा च मधुयष्टिका ॥ ५५॥ और अमरवेल, दूधी, गंधप्रियंगू, उत्पलसारिवा, इन्होंको धमासा, अनंतमूल, रायशण, कमलिनी, मुलहटी इन्होंको ॥ ५५॥
बृहतीद्वयकाश्मयः क्षीरिशृङ्गत्वचो घृतम् ॥
पृश्निपर्णी बला शिग्रुः श्वदंष्ट्रा मधुपर्णिका ॥ ५६ ॥ दोनों कटेहली, कंभारी, वंशलोचन, जीवक, दालचीनी, घृत इन्होंको पृश्निपर्णी, खरेहटी, शहोंजना, गोखरू, मुलहटी, इन्होंको ॥ ५६ ॥
शृङ्गाटकं बिसं द्राक्षा कसेरु मधुकं सिता॥
सप्तैतान्पयसा योगानर्द्धश्लोकसमापनान् ॥५७ ॥ सिंघाडा, कमलकी नाल, दाख, कसेरू, मुलहटी, मिसरी, इन्होंको आधे आधे श्लोकमें समाप्त होनेवाले इन सातों योगोंको दूधके संग ॥ १७ ॥
क्रमात्सप्तसु मासेषु गर्ने स्रवति योजयेत् ॥
कपित्थबिल्वबृहतीपटोलेक्षुनिदिग्धिजैः॥ ५८ ॥ गर्भके झिरनेमें क्रमसे सात महीनोंतक योजित करै, और कैथ, बेलपत्र, बडीकटेहली, परवल, ईख, छोटी कटेहली, इन्होंकी ॥ ५८॥
मूलैः शृतं प्रयुञ्जीत क्षीरं मासे तथाऽष्टमे ॥
नवमे सारिवाऽ नन्तापयस्यामधुयष्टिभिः ॥ ५९ ॥ जडोंकरके पकायेहुये दूधको आठवें महीनेमें प्रयुक्त कर और नवम महीनेमें अनंतमूल, धमासा दूधी, मुलहटी, इन्होंकरके सिद्ध किये दूधको योजित करै ॥ ५९॥
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