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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२४८) अष्टाङ्गहृदयेपानपं पाययेन्मद्यं तीक्ष्णं यो वेदनाक्षमः॥ न मूर्च्छत्यन्नसंयोगान्मत्तः शस्त्रं न बुध्यते ॥१५॥ __ और नित्यप्रति मदिराको पीनेवाले रोगीको तीक्ष्णरूप मदिराका पान करवावै,जो रोगी पीडाको नहीं सहसता हो यह उसके निमित्त कार्य है क्योंकि अन्नके संयोगसे वह रोगी मूर्छाको प्राप्त नहीं होता है और मदिराकरके उन्मत्त हुआ रोगी शस्त्रको नहीं जानता ॥ १५ ॥ अन्यत्र मूढगभाइममुखरोगोदरातुरात्॥ अथाहृतोपकरणं वैद्यः प्राङ्मुखमातुरम् ॥ १६ ॥ परन्तु मूढगर्भ, पथरी, मुखरोग, उदररोगसे अन्यजगह वांछित भोजन और मदिराके पानको शत्रकर्मसे पहले सेवित करावै और सामग्रियोंको लियेहुये और पूर्वकी तर्फ मुखवाले रोगीको ॥१६॥ सम्मुखो यन्त्रयित्वाशु न्यस्येन्मर्मादि वर्जयन् ।। अनुलोमं सुनिशितं शस्त्रमापूयदर्शनात् ॥१७॥ पश्चिमके तर्फ मुखबाला वैद्य रोगीको यन्त्रित करके और मर्मआदिको वर्जताहुआ अनुलोमरूप और अतितीक्ष्ण शस्त्रको शीघ्रही प्राप्त करै, जबतक रादका दर्शन होवै ॥ १७ ॥ सकृदेवाहरेत्तच्च, पाके तु सुमहत्यपि ॥ पाटयेद् द्वयंगुलं सम्यग्यंगुलव्यंगुलांतरम् ॥ १८ ॥ परन्तु रादको देखतेही तत्काल शस्त्रको निकासै और अत्यन्त ज्यादा पाक होवे तो दो अंगुल अथवा तीन अंगुल करके अन्तरित घावको फाडै ॥ १८ ॥ एषित्वा सम्यगेषिण्या पारतः सुनिरूपितम् ॥ अंगुलीनालवालैर्वा यथादेशं यथाशयम् ॥ १९ ॥ और एषणीकरके अच्छीतरह चारोंतर्फसे निरूपित कियेको एषित करके पीछे अंगुली, कमलआदिकी नाल, वाल, इन्होंकरके योग्य देश और योग्य स्थानके अनुसार व्रणको करै ॥ १९ ॥ यतो गतां गतिं विद्यादुत्सङ्गो यत्र यत्र च ॥ तत्र तत्र व्रणं कुर्यात्सुविभक्तं निराशयम् ॥२०॥ जिस प्रदेशमें दूर प्राप्त हुई नाडीको जाने, और जहां जहां ऊंचाईको जानै, तहां तहां विभक्त किये दोनों तर्फको युक्तकर रादआदिके स्थानसे वर्जित ॥ २० ॥ आयतं च विशालं च यथा दोषो न तिष्ठति ॥ शौर्यमाशुक्रिया तीक्ष्णं शस्त्रमस्वेदवेपथुः ॥२१॥ __लंबाईसे संयुक्त जैसे रादकी स्थित न होसकै, ऐसे विशालरूप व्रणको करे और शूरवीरता, हाथकी चतुराई, तीक्ष्णशस्त्रयुक्त होना वैद्यको उचित है और पसीना और कंपा आनी उचित नहीं घावको देख व्याकुल न हो ॥ २१ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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