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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (२४१) और तिन्होंके विपर्ययसे अर्थात् प्रतिलोमकरके अर्वाचीनको और अनुलोमकरके पराचीन शल्यको निकासे और तिरंगत शल्यको जिसदेहके वशसे छेदन करके पीछे सुख करके निकस सकै तैसे निकासै ॥ १९ ॥ शल्यं न निर्घात्यमुरःकक्षावङ्क्षणपार्श्वगम् ॥ प्रतिलोममनुत्तुण्डं छेद्यं पृथुमुखं च र त् ॥ २०॥ छाती कांख अण्डकोशकी संधि, पशली, इन्होंमें स्थित हुये शल्य निर्घातन करनेके योग्यः नहीं हैं और प्रतिलोमके तरहसे प्राप्त हुआ और बाहिरको बुलबुलेकी समान ऊंचा हुआ और . छेदन करनेके योग्य और विस्तृत मुखबाले शल्य निर्घातन करनेके योग्य नहीं है ॥ २० ॥ नैवाहरेद्विशल्यन्नं नष्टं वा निरुपद्रवम् ॥ अथाहरेत्करप्राप्यं करेणैवेतरत्पुनः॥ २१॥ विशल्यन्न अर्थात् जबतक शल्यसहित रहै तबतक प्राण रहै ऐसे विशल्यन्न शल्यको और नष्ट हुये शल्यको और उपद्रवोंकरके रहित शल्यको न निकासै; हाथमें प्राप्त होनेके योग्य शल्यको हाथहीकरके निकासै और कंकमुखआदि शस्त्रकरके नहीं निकालै और इससे अन्य ॥ २१॥ दृश्यं सिंहाहिमकरवम्मिकर्कटकाननैः॥ अदृश्यं व्रणसंस्थानाद्रहीतुं शक्यते यतः॥२२॥ अर्थात् हाथकरके नहीं प्राप्त होनेके योग्य और दीखनके योग्य शल्यको सिंह, सर्प, मछली . वर्मिक, ककेरा आदिक मुखोंके समान मुखोंवाले यंत्रोंकरके निकासै अदृश्यरूप शल्यको व्रणके. संस्थानसे ग्रहण करनेको ॥ २२ ॥ कभृङ्गाकुररशरारीवायसाननैः ॥ संदंशाभ्यां त्वगादिस्थं तालाभ्यां सुषिरं हरेत् ॥ २३ ॥ कंक अर्थात् जलकाक भुंग अर्थात् भौंरा कुरर शरारी काक इन्होंके मुखोंके समान मुखवाले यंत्रोंकरके निकासै और त्वचा आदिमें स्थितहुये शल्यको संदंश अर्थात् चिमटारूपी यंत्रोंकरके निकासै और जो त्वचाआदिमें छिद्ररूप शल्य होवे तो तालयंत्रोंकरके निकासै ॥२३॥ सुषिरस्थं तु नलकैः शेषं शेषैर्यथायथम् ॥ शस्त्रेण वा विशस्यादौ ततो निर्लोहितं व्रणम् ॥ २४॥ और छिद्रमें स्थितहुये शल्यको नाडीयंत्रोंकरके निकासै और शेष शल्योंको शेषरूपी यंत्रोंकरके, यथायोग्य निकासै, अथवा शस्त्रकरके मांसआदिको काटके पीछे रक्तसे रहित व्रणको ॥ २४ ॥ कृत्वा घृतेन संस्वेद्य बद्धाऽचारिकमादिशेत् ॥ शिरास्नायुविलग्नं तु चालयित्वा शलाकया ॥२५॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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