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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ww.kobaithong www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acharya Shn Kailassaga सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (२३९) निर्याति शब्दवान्स्याच्च हृल्लासः साङ्गवेदनः॥ संघर्षो बलवानस्थिसन्धिप्राप्तेऽस्थिपूर्णता ॥७॥ शब्दसहित वायु निकसता है, और अङ्गोंमें पीडासहित हल्लासरोग होता है, और हड्डियोंकी सन्धिमें शल्यकी स्थिति हो तो बलवाला क्षोभ और हड्डियोंकी पूर्णता उपजती है ॥ ७ ॥ नैकरूपा रुजोऽस्थिस्थे शोफस्तद्वच्च सन्धिगे॥ चेष्टानिवृत्तिश्च भवेदाटोपः कोष्ठसंश्रिते ॥ ८॥ हड्डियोंमें शल्यकी स्थितिहो तो अनेक प्रकारको पीडा और शोजा उपजताहै और सन्धिगत शल्यमंभी ऐसेही लक्षण जानने, परन्तु चेष्टाका उपराम हो जाता है, कोष्ट अर्थात् पेटमें शल्यकी स्थिति होवे तो आटोप अर्थात् क्षोभ ॥ ८ ॥ आनाहोऽन्नशकृन्मूत्रदर्शनं च व्रणानने ॥ विद्यान्मर्मगतं शल्यं मर्मविद्धोपलक्षणैः॥ ९॥ अफारा और वावके मुखमें अन्न विष्ठा मूत्रका दर्शन होता है और मर्मको वींधे हुयेके लक्षणों. करके मर्मगत शल्यको जानना ॥९॥ यथास्वं च परिस्रावस्त्वगादिषु विभावयेत् ॥ रुह्यते शुद्धदेहानामनुलोमस्थितं तु तत् ॥ दोषकोपाभिघातादिक्षोभाद्भूयोऽपि बाधते ॥ १०॥ और यथायोग्य परिस्रावआदिकरके त्वचाआदिकोंमें शल्यको जानै, और वमन विरेचन आदिकरके शुद्ध देहोंवाले मनुष्यों के अनुलोम स्थितहुआ वह शल्य आपही अङ्कुरको प्राप्त होता है, परन्तु दोषके कोपसे और अभिघात आदि क्षोभसे फिरभी पीडाको करता है ॥ १० ॥ स्वङ्नष्टे यत्र तत्र स्युरभ्यंगवेदमर्दनैः॥ रागरुग्दाहसंरम्भा यत्र चाज्यं विलीयते ॥११॥ और त्वचामें जो नष्ट शल्य होजावें तो जहां जहां अभ्यंग स्वेद मर्दन इन्होंकरके राग शूल दाह क्षोभ ये उपजै और जहां युक्त किया घृत लीन होजावे ॥ ११ ॥ आशु शुष्यति लेपो वा तत्स्थानं शल्यवद्वदेत् ॥ मांसप्रनष्टं संशुद्धया कर्शनाच्छ्रथतां गतम् ॥ १२ ॥ ___ अथवा जहां कियाहुआ लेप शीघ्र सूख जावे, तिसस्थानको शल्यवाला कहना, वमन विरेचनआदि क्रियाकरके जो कृशता होती है, तिसकरके शिथिलभावको प्राप्त हुआ ॥ १२ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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